QUOTES ON #ASLINEHA

#aslineha quotes

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22 SEP 2020 AT 8:07

सुनो कान्हा!
कुछ अनमने से सवाल है,
तुम जवाब दोगे क्या?
ना रुक्मिणी सा समर्पण है,
ना प्रेम राधा सा!
और ना ही मीरा जैसी भक्ति है,
बस एक छलावा है कलयुग का,
तुम मुझसे छलोगे क्या?
ना मै कुब्जा सी रूपसी,
ना मुझमे कंस सा द्रोह,
बस एक हृदय है मैला सा,
तुम भी संग मैले बनोगे क्या?
सुनो कान्हा!
कभी जवाब दोगे क्या?

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1 AUG 2020 AT 16:45

चलो कुछ बात करते है,
मैं ठहरी रहूं, तुम चलते रहो,
कुछ ऐसा इत्तेफ़ाक रचते है,
बहुत रह चुके ख़ामोश अब तो,
चलो कुछ बात करते है।
मैं रंग की तरह बिखरी रहूँ,
रंगरेज बनके तुम मुझे समेटते रहो,
मैं सहर की तरह खिलती रहूँ,
तुम रात की तरह ढलते रहो,
बहुत खिल चुके फूल अबतक,
चलो कुछ काँटे चुनते है ।

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15 FEB 2021 AT 22:15

हे सुन्दर पीत कुसुम!
कल पूरे खिल जाना।

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23 SEP 2020 AT 12:51

लफ़्ज़ों से कह दो ज़रा ख़ामोश रहे,
लोग नाम पूछ कर घर जला देते हैं!

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15 MAR 2021 AT 21:42

शून्य से इतर,
आरंभ और समापन के मध्य,
जीवन और मृत्यु के चक्र से विमुख!
नश्वर मृत्यु के मोहपाश में,
जकड़ा हुआ जीवन का विहंगम दृश्य,
और ईश्वर की आभा से दूर,
अत्यंत अंधकारमयी कोख में,
फलित मृत्यु का साकार स्वरूप,
अवश्य ही ईश्वर ने जीवन को
साकार करने से पूर्व,
देख लिया होगा मृत्यु का मोहक स्वरूप,
और चुन लिया अपने लिए सत्य को,
रख दिया कोरी कल्पनाओं से संजोकर जीवन,
को अपने तथाकथित अनुपम सृजन के लिए!
सच में ईश्वर नें छला है अपने सृजन को!!

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21 NOV 2020 AT 17:21

Life is a function of,
Magnificent discontinuities!
We have to differentiate them,
Until we get a continuous function!

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21 FEB 2021 AT 22:35

अत्यंत सरल है ज्ञान की खोज में,
गृह त्याग कर बुद्ध हो जाना,
मोह से विमुख होकर,स्वयं सत्य हो जाना,
अत्यंत सरल है, देखकर जगत का मिथ्या भ्रम,
ढूढ़ना सत्य को वन में किसी वट की छाँव तले,
और मूंद कर अपने नेत्र देखना सत्य को,
सरल है, गृह त्याग कर बुद्ध हो जाना॥
वास्तव में अत्यंत सरल है, किन्तु!
उतना ही कठिन है, बिना नींद के सो जाना,
और भींच कर अपना स्वर यशोधरा हो जाना,
मौन रहना और खोजना अबोध राहुल के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर................

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17 JAN 2021 AT 16:20

उस क्षण जब प्रकृति नहीं गा रही होगी,
सृजन का मंगलगान,
उस क्षण जब विधाता नहीं लिख रहे होंगे,
मनु और शतरूपा का प्रेम ग्रन्थ,
उस एक क्षण जब नहीं बन रहा होगा,
सृजन का कोई भी आत्मिक योग,
विनाश के उन अन्तरिम क्षणों में,
जब आदियोगी कर रहें होंगे,
सृजन का महातांडव,
तब तांडव के महानाद से,
जनित विध्वंस का संगीत,
और प्रकृति का शाश्वत मौन,
एक साथ मिलकर निराकार हो रहे होंगे,
उस क्षण अवश्य विधाता के मन में प्रथम बार,
प्रेम का अंकुर प्रष्फुटित हुआ होगा!!

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21 DEC 2020 AT 9:34

कुछ कविताओं में,
प्रेम का रस नहीं होता!
वे नहीं बताती नायिका की आंखो का रंग,
इन तुच्छ कविताओं में,
नहीं होता है,
हमारे तथाकथित सभ्य समाज का प्रतिबिंब!
ये निम्न कोटि की कविताएँ,
राजनीति के मसालों से विमुख रहती हैं,
नहीं करती दीन हीन शोषितों का बखान!
ऐसी कविताऐं लिखी जाती हैं,
अनगढ़ कवियों द्वारा,
और ये कहती हैं, कुछ अनगढ़ किस्से!
जिन्हें सुनने और सुनाने के लिए,
चाहिए असीम निश्छलता!
किन्तु ऐसी निश्छल कविताएँ,
पड़ी रहती हैं, कविताओं की अंतिम पंक्ति में
समाज में निश्छल मनुष्यों की तरह!!

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10 FEB 2021 AT 14:37

नियत, नवल, नूतन, शाश्वत संगीत सा,
गूँज रहा है कहीं गीत राग दीपक सा,
जल रही है ज्वाला सी नवजीवन की,
उठ रही है धुंध सी कहीं धूमिल हसरतों की॥

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