"मेरे गुरु मेरे रचनाकार"
मैं माटी का एक बेजान पुतला,
दे ज्ञान आपने ही मुझमें प्राण संचार किया।
बेढ़ंगे से मेरे मन को अपने विचारों से
अपने ही है आकार दिया।
कुछ ना था मैं बीन आपके,
आपने ही मुझमें पूंज प्रकाश का संचार किया।
रख अपने हाथों को मेरे सिर पर,
आपने ही है सोच मेरा विस्तार किया।
जब-जब फंसा मझधार में मैं,
तब-तब आपने ही मेरा उद्धार किया।
थाम के आपने मेरे हाथों को,
जीवनपथ पे चलने को मुझे तैयार किया।
मैं माटी का एक बेजान पुतला,
दे ज्ञान आपने ही मुझमें प्राण संचार किया।
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