फ़साना मेरे दिल का बड़ा अजीब रहा है
जो गैर था मेरा हमेशा वही अजीज रहा है-
दिल का खजाना अक्सर बेहिसाब लुटाया है मैने
फिर भी इस भीड़ में खुद को अकेला पाया है मैंने-
अपने रुतबे और घमंड को मेरे बाद रखना
मैं अनुराग हूं साहब ये हरदम याद रखना-
दिल, जहन और दिमाग में तस्लीम हो गई हो तुम
ऐसा लगता है अब कि मेरी तकदीर हो गई हो तुम-
सफ़र मुकम्मल नही हुआ अभी मेरा
एक प्यार का जहां बसाना बाकी है
खत्म नहीं हुआ है यह रंजो गम मेरा
अभी भी मेरा कुछ फसाना बाकी है-
मिटा रहा था यादें तेरी पर ये दिल मेरा मुखालिफ हो गया है
मेरा दिल बगावत कर अपनी मर्जी के मुताबिक हो गया है-
हजारों चेहरों में से एक तेरी ही तस्वीर लेकर गया
चैन अपना आज ये मेरा गुस्ताख दिल देकर गया
कोशिश में लगा था खुद को दुश्मनो से बचाने की
आज तो कोई अपना मुझे बेहद जख्म देकर गया-
आस पे अब आस लेकर ख्वाब ये मरता दिखे
मय-कशी से याद ये अनुराग कम करता फिरे-
तलाश यहीं खत्म नहीं होती
मुझे अभी और आगे तक जाना है
अभी कोई मत रोको यूं ही
मुझे अभी मयखाने तक जाना है
छूट गया था जो सफर अधूरा
उसे मुझे अभी मुकम्मल बनाना है
सुकून की तलाश है आज
मुझे अभी मयखाने तक जाना है
हसरतें पूरी नहीं हुई है दिल की
आज मुझे इन हसरतों को भुलाना है
नफरत मिटाने की कोशिश में
मुझे अभी मयखाने तक जाना है-