काज निहित जब मिल गया, इसको अपना मान ।
उद्यम की कुंजी सकल, खुले चक्षु मिले ज्ञान ।।-
भावार्थ:
समाज में आर्थिक और जाति की असमानता को
लेकर किया जाने वाला भेदभाव, समाज को दूषित
ही करता है और आपस में जहर घोलता है।
यह कड़वा सत्य युगों से अटल सत्य है, चाहे वो
आज कलयुग का समय हो या राजा श्री राम के
समय में अच्छे रास्ते पर चलने वाला रामराज।-
भावार्थ:
यह समय एक बलवान पथिक के समान ही अनंत
काल से निरंतर चलता चला जा रहा है। ये कभी नहीं
थकता, कभी नहीं रुकता जैसे कि इसके सतत चलने
का निश्चय ही इसका मान हो।
समय अपने इस व्यक्तित्व से सिखाता है कि हमको भी
अपने निश्चयों को समय से समान दृढ़ और अडिग रखना
चाहिए और प्रगति पथ पर निरंतर चलते रहना चाहिए।-
भावार्थ:
जब कलम और लिखने के लिए कुछ पत्र
या कागज़ अपने को सार्थक करते हैं तो
लिखे हुए अक्षर उस का प्रमाण होते हैं।
इसी प्रकार एक लेखक के निर्माण का
प्रमाण उसके सधे हुए विचारों का क्रमिक
प्रवाह होता है।-
भावार्थ:
सिर्फ धन के बल पर यदि कोई खुद को ताकतवर
समझता है तो यह ताकत शीघ्र ही खंडित हो जाने
वाली है और इससे प्राप्त सुख तब तक ही रहता है
जब तक जब तक धन है। लेकिन संतोष से प्राप्त
सुख हमेशा बढ़ता रहता है और हे मनुष्य तुझको
यह याद रखना चहिए।-
भावार्थ:
जब ईश्वर ने कीड़े, पशु, पक्षी और मानव
सभी को एक ही तरह की प्राणवायु दे कर
इस पृथ्वी की उत्पत्ति की है, जब सभी को
अंत में ये नश्वर शरीर त्याग कर चले जाना है,
तो हे मनुष्य तुझ को किस बात का अभिमान है।
इस प्रकृति का नियम समझ, पशु पक्षियों का
विनाश बंद कर और पृथ्वी पर संतुलन बना कर
रख वरना ये विनाश एक दिन समस्त मानव जाति
के विनाश का कारण बनेगा।-
आपा मन का खो दिए, फिरे मनका पाए ।
याद गुरु को कर लियो, भूल समझ आ जाए।।
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भावार्थ:
इस संसार में कोई आरंभ, कोई अंत नहीं है
क्योंकि किसी इच्छा का अंत होने से पहले
दूसरी इच्छा मन में घर कर लेती है। प्रलोभनों
से भरे संसार का निर्माण ही ऐसे किया है
कि हमको वो सच लगे जो कभी सच था ही
नहीं। ये हिरण की सुंदर आंखों के समान
आकर्षित करने वाली माया का छल ही है
कि हमारी प्यास, जीवन में कुछ पाने की
इच्छा कभी खत्म नहीं होती।-
भावार्थ:
हमारी प्रकृति जिसको हम माता का दर्जा देते हैं
वो सच में प्रकट रूप से ही एक मां की तरह ही
वात्सल्य का भंडार है। लेकिन आज यही मां
समस्त मानव जाति से त्रस्त है और व्यथित हो
कर पुकार रही है कि उसका शोषण करना बंद
करो और सिर्फ बोल कर ही नहीं बल्कि अपने
व्यव्हार से भी मां मानो।-
भावार्थ:
समाज की असमानता, इसका एक गुण है।
विभिन्न कार्य क्षेत्रों में विभिन्न श्रेणियों में अलग
ही कार्य कुशलता चहिए होती है और यही
भिन्नता समाज को सुचारू रूप से चला
पाती है। जैसे कि हमें किसान भी चाहिए,
हमें व्यापारी भी चहिए और रक्षा हेतु सैनिक
भी चाहिए।
यदि आप इस समाज को एक पूर्ण अंक समझ
लें, तो इस पूरे एक को पूरा करने के लिए सभी
घटकों का होना आवश्यक है।-