जिनका किनारों पे घर रहता है
उनको उजड़ने का डर रहता है
मेहमान नवाजी होती है गांवों में
घर छोटे और बड़ा ज़िगर रहता है
मेरी आवाज़ से जान लेती है हाल
वो माँ है उसे तो सब खबर रहता है
चील कव्वों पर भी है रहमत उसकी
आसमान से ही सब नज़र रहता है
महबूब की गली से है छोड़ा गुज़रना
उधर तो अब बस ग़दर रहता है
संगत करना तो सुख़नवरों की करना
हर जग़ह अदब का असर रहता है
मुसाफिरों का भी होता है आशियाँ क्या
सब पूछते हैं कि आला किधर रहता है !
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