दिवार कि उस सीली दरार में
पीपल का एक पौधा उपज आया
वह मुझसे पूछता
मै अपने घर आया या पता गलत ले आया-
|कागज़ की तस्वीर|
सोचा आज यादों का सफर तय करते हैं
अपने सुख-दुख तस्वीरों से साझा करते हैं
परंतु यह क्या मोबाईल में कैद तस्वीरें मिट गई हैं
तभी अलमारी के उस कोने पर नज़र पड़ी
जिसने धूल की चादर ओढ़ रखी थी
थोड़ी मश्कत लगी चादर खिंचने में
मगर बरसों पुरानी यादें हाथों में थी
प्यार से संजोया वह फोटो एलबम
लिखा था जिसपे कैदी खुशियां
एक एक कर तस्वीरें आती गईं
फिर कुछ बाईस्कोप सा अनुभव हुआ
और बरसो पुरानी मुस्कान लिए
यादों के सफर पर चल पड़े
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// युवा और बेरोजगारी //
आखिर बेरोजगारी पे काहे का रोना
जब युवा वर्ग मेहनत से कतराए
अपनी खामीयों पे सरकार को आखिर उंगली क्यों दिखलाए
सरकार ने तुझे कभी ना रोका सीखने का हर एक मौका
अरे मूरख अपने हुनर को जान
अपनी डिगरीयों का तू कर सम्मान
कोसने से क्या मिलेगा दर दर भटकना आवश्यक है
अवसर भले छोटा मिले आरम्भ करना आवश्यक है
भूल जा तू नौ से पांच खुद को तू थोड़ा और तपा
आग दे तू फूंक दे खुद को जरा तू झोंक दे
सोने समान र्निमित तू होगा
भूख तू मिटाएगा रोते हैं जो बेरोजगारी पर
उनका सबक बन जाएगा(२)
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/सूरत और सीरत का भेद/
हमने कहा कि सूरत में क्या रखा है
हुजूर ज़रा सीरत भी देखिए
हुजूर भी बड़े ताव में बोले कि
मोहतरमा सीरत भी उनकी ही दिखती है
जिनकी लोग सूरत देखते हैं
वरना आप ही कहें कि
लोगो को सीरत और सूरत का भेद
ज्ञात कैसे होता!
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// मरीजनामा //
थकना नही रूकना नही बस
प्रयास करते जाना तू
नाउम्मीद लग रहे हैं जो
उनका भी ना हटाना तू
मौत से तू जीत कर
हिम्मत से यूं ना हार तू
हौसला बुलंद कर
मन को तू स्वछंद कर
बाजुओं पे जोर दे
त्रुटियों को तोड़ दे
मन में थोड़ा धैर्य रख
ऐसा समा भी आएगा
उपहास कर रहे हैं जो
वह भी चकित रह जाएगा
प्रयास तेरा देख कर
तुझे मिसाल बनाएगा(२)
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// गुरु - शिष्य //
देख किताब जब मन घबराया
मास्टर जी का डंडा याद आया
बड़ी हिम्मत कर हौसला जुटाया
नम्बर खोज फिर फोन घुमाया
एक जर जरी सी आवाज आई
कौन शरारती बोल रहा है
गलत पते पर फोन लगा है
क्षण भर की भी देर ना की और
झटपट नाम अपना बतलाया
थोड़ा समय लगा उन्हे पर
फिर याद उन्हे वह बैच जो आया
कोविड नाम था जिसका
१६ बैच वह कहलाया-
// पुराना बस्ता //
उस जमाने का वो बस्ता
किताबों से सजा होता था
और शायद वो जमाना
अब पुराना कहलाता है
दस्तूर देखिए नए जमाने का
अब ना तो वह बस्ता रहा ना किताबें
बस मोबाईल गुलाब और
कुछ चाॅकलेट पड़ी रहती है
अंजुली भर के जेबों में
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// जिम्मेंदार कौन - आत्महत्या //
आत्महत्या का बोझ मरने के बाद भी
उन बच्चों पर ही क्यों होता है
एक दफा यह सोचा जाए की उनके जहन में
मां बाप का कितना डर होता है
कितनी फिक्र होती है उनके इज्जत की
कितनी दफा उसके घर वालो ने
यह कहा होगा की अब तुम ही इज्जत हो
यह परिस्थिति कोई क्यों नही समझता है
और अंत में कहता है कि
"मरने की क्या जरुरत थी"
"यह सब इतना जरुरी भी नही था"-
|बनारस की ओर|
राही कभी समय मिले तो
शहर बनारस तुम चले आना
एक शाम गंगा तट पे बिताना
बीती बिरहा प्रीत की गाना
मन की गांठे तुम सुलझाना
काल चक्र कि बेड़ियां को
तोड़ स्वतंत्र सकल हो जाना
राही कभी समय मिले तो
शहर बनारस तुम चले आना
-आवाज़
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