ऐ ज़िंदगी ज़रा सा धीमे चल,
मैं मुसाफ़िर हुं तेरे ही सड़क का
तेरी रफ़्तार पकड़ते-पकड़ते
अब थक गया हुं मैं,
अधमरा सा चलते-चलते
तुझसे यह कहते-कहते
अब थक गया हुं मैं
ऐ ज़िंदगी ज़रा सा धीमे चल।-
#silent_headphone for story
#middleclasspocket for series
#aditiyankseri... read more
मतो में भेद हो तो भी एक बारी को सवर जाएगा
मगर मनों मे भेद हो जाए तो यह देश बिखर जाएगा-
उन जख्मों को फिर से हरा करेंगे
तुमसे मिलने का वायदा हम हर बार पूरा करेंगे-
उसने मुझे मंदिरो में ढूंढा
उसने मुझे नमाज़ो में ढूंढा
मैं यूं ना किताबों मे मिला
ना हि मैं बाजा़रो मे मिला
आलम ए सुकून हूं जनाब
मैं तो र्सिफ इमदाद हाथों को मिला-
सूरत में क्या रखा है जनाब
क्योंकि देखने में तो गुलाब भी गजब का कहर ढाता है
देखना ही है तो किसी की आंखो में देखिये
क्योंकि इनमे तो अनकहा अक्स भी नजर आता है-
एक वक्त में तो र्सिफ तुम्हारी बातों का ही जिक्र हो पाएगा
आखिर तुम्हारी हस्ती जो इतनी कमाल है कि
तुम्हें जानने में पूरे उम्र का त़काजा कम पड़ जाएगा-
साल गुज़र गया पर मानो लगता है
कि जैसे कल की ही बात हो
साथ ही थे सब फिर भी लगता है जैसे
कि अब बस खयाल ही पास हों-
मैं उस शायर की कलम दवात हूं
या मैं उसका अहसास हूं
स्याही के कंण कंण में बसती मैं
इक बड़बोली सी आस हूं-
मेरे दिल की गहराईयों में इक गहरा समंदर है
पर जनाब डूब जाने की अदा हर किसी में कहां होती है-