"ताउम्र की गुलामी मंज़ूर की थी ना मैंने, तुम रिहाई चाहते थे....
तो अब मेरे कंगन का,घड़ी में तब्दील हो जाना,
क्यों खलता है तुम्हें...???"
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ये जो वक़्त,
तुम्हारे बिना गुज़रता है ना...
बस अपनी ज़िंदगी के
इसी हिस्से से नफ़रत है मुझे....-
सीखने की उम्र में ही,तज़ुर्बे किए बैठे हैं।
सीखने की उम्र में ही.......
तज़ुर्बे किए बैठे हैं।
जी जनाब....
आप बिल्कुल ठीक समझे,
हम इश्क़ किए बैठे हैं।-
ए ज़िन्दगी,
एक दिन सुपूर्द-ए-ख़ाक होना है...
मैं इसी ख़ौफ में
हयात गुज़ार दूं क्या???-
अपनी गै़रत ,
दाव पर लगा कर
जो गुज़रे थे।
लाज़मी था ,
तेरे शहर में
पत्थरों से सामना।-
शिफ़ा-ए-कागज़-ओ-क़लम मियां
दर्द लिखते हैं , दर्द मिटाने को
दर्द पढ़ते हैं , दर्द मिटाने को-
मुझको ज़िन्दगी,
क़तरा क़तरा नहीं जीनी है...
सुभा हो गई है,
चाय तो स्टील का ग्लास
भर के ही पीनी है...
😝☕☕☕☕☕😂
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क़यामत ही होगा अब हर फ़ैसला,
रंग चाहे इसे अब कुछ भी दे दीजिए..
आपके हर इरादे से वाक़िफ है जनाब,
बहलाने की अब हमें कोशिश ना कीजिए...-
मेरी हर ख्वाहिश पूरी करती वो,
नसीब को भी कुछ यूं चिढ़ा देती है!
लोग कहते हैं,
चांद किसी का नसीब नहीं होता
मां उस बात को भी झुठला देती है !
मेरी एक मीठी जिद्द पूरी करने को..
गीली मेहंदी के गोले में छिपा कर,
हथेली में चांद थमा देती है..
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