खोल दे त्रिनेत्र, बढ़ गए है असुर।
और न कर देर अब, जल रहे है बेकसूर।।
सहस्त्र आँखें देख रही, बेआबरू इंसानियत हो रही।
मानवों की बस्ती में, दानवों से घिर रही।।
राख़ में भी भस्म है, मानवों में मानव नही।
खोल दे त्रिनेत्र अब, शिव-प्रिया जल रही।।-
मैं मिट्टी हूं, तुम बारिश बन जाना,
बनके प्यार बरसना मुझपर,
तेरे प्यार की पहली बूंद से,
मैं हमारी मोहब्बत की खुशबू हो जाऊंगा,
मैं मिट्टी हूं, तुम बारिश बन जाना...-
सांस ले सकू खुली खुली,
बंधन तोड़ सारे,
छोटी सी यह आशा है,
फ़िरू संसार पसारे.!-
हर ओर छाया अंधेरा रे,
दरिंदा तू जिस्म नोचता रे,
इंसान इंसानियत हुई गुमशुदा रे.!-
मंदिर में भक्ति, शमशान में वैराग्य
और मुसीबत में प्रेम जागता है।
जागता जरूर है, पर रहता नहीं है।-
हे महादेव...
जब आपसेही मेरे सारे वास्ते है,
आपसेही मिलते मेरे सारे रास्ते है,
फ़िर इस दुनियां से क्या लेना,
सब आपसेही लेना और आपकोही देना.!-
टूटनेका अब डर नहीं लगता,
क्योंकि हारा मैं कई दफ़ा हूँ।
जीत की कोई लत नहीं,
क्योंकि अभी मैं जीता नहीं हूँ।
रुकना नहीं अब बार बार,
क्योंकि मंज़िल से अभी मैं दूर हूँ।
उम्मीद नहीं अब किसीसे भी,
क्योंकि ख़ुद की मैं उम्मीद की किरण हूँ।-
४० दिन में एक ऐसा दिन नहीं, जिस दिन वो हारे नहीं।
और एक ऐसा दिन नहीं, जिस दिन ये संभा जीता नहीं॥
४० दिन में एक ऐसा दिन नहीं, जिस दिन वो औरंग मरा नहीं।
और एक ऐसा दिन नहीं, जिस दिन ये संभा जिया नहीं॥
४० वे दिन मृत्यु को मार कर, ख़ुद "मृत्युंजय" हो गया।
ऐसा मृत्यु को पराजय करने वाला, विश्व में दूजा संभा नहीं॥-