सुनो न...
इश्क़ में टूटे हुए थे ऐ-हयात
फिर भी इश्क़ का गुनाह कर बैठे..
तुम्हारी चंद मीठी बातों को
फ़क़त इश्क़-ए-इजहार समझ बैठे..
अमावस की रात में खुद को
बेसबब ही चांद की चांदनी समझ बैठे..
जो मुक़म्मल हो नहीं सकता
उल्फ़त उसी इश्क़ में मन्नत मांग बैठे..
इतनी अच्छी कहां किस्मत हमारी
जो तेरी हो जाऊं..
चले थे बेशुमार इश्क़ करने तुझसे
मगर अज़ाब हम ख़ुद के हिस्से ले बैठे..
❤️❤️❤️-
सुनो न..
जो कहना चाहूं तुमसे वो कह नहीं पाती
बिन कहे ही ये वृष्टि तुझपे फ़ना होगी..।
तुमसे नहीं तुम्हारे रूह से मिलना हुआ है मेरा
इश्क़ की आड़ में फिर से हजारों ख़्वाब मेरी दफ़न होगी..।
देर लगती है शायद दुआ पूरी होने में यहां
टूट चुकी होगी ज़िंदगी जबतक मेरी दुआ क़ुबूल होगी..।
❤️❤️❤️
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सुनो न...
थी तम्मना साथ उनकी गुफ्तगू हो इश्क़ की
मगर शब ए वस्ल चांद से मेरा झगड़ा हो गया..
मुक़द्दस इश्क़ मुकम्मल ना हुआ मेरे नसीब में
उनसे इश्क़ करते तो इक ज़माना हो गया..
दिल में जश्न-ए-तरब चराग़ाँ नहीं होता
अब बेज़ुबान इश्क़ मेरा मुझसे रुठ कर बेवफ़ा हो गया..
उफ्फ़ मुझसे ये कौन सा जुर्म क्या सितम हो गया..
सारी ख्वाहिशें दफ़न हो गई मेरी
और हिज्र वाली रात मेरा चांद मुझसे खफ़ा हो गया..
❤️❤️❤️-
सुनो न...
इश्क़ वालों ने जी भरकर लूटा हमें
मेरे हर इक जज़्बात पर..
फिर भी मैं फ़क़त लिखती रहूंगी
इश्क़-ए-ताल्लुक़ात पर..
करते रहे गुरूर हम
इश्क़ में जिनके साथ का...
वही छोड़ गए हमें
मेरे बुरे वक्त और हालात पर..
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सनो न...
ख़्वार-ए-अतीत है तो क्या हुआ
इश्क़ में फिर से जिन्दग़ी गुलज़ार करते हैं..
तुम्हें शिकायतें जो मुझसे बेशूमार हैं
आओ न बैठकर फ़ुरसत में बातें हज़ार करते हैं..
इक़रार करो या इंकार है तेरी रज़ा
हम तो तब भी तुमसे इश्क़-ए-इज़्हार करते हैं..
वफ़ाई में हसरतें सारी करके दफ़न
चलो न इश्क़ में फिर से जिन्दग़ी बेज़ार करते हैं..
❤️❤️❤️-
सुनो न...
ज़िक्र करते हैं तेरा इस क़दर अल्फाज़–ए–महताब..
की दुनियां शायरी को मिरी जुनूँ–ए–इश्क़ कहती है
❤️❤️❤️-
सुनो न...
मेरी महफ़िल में आकर रौनक बढ़ाने वाले...
क्या तुम मेरे कोरे लफ़्ज़ों के अल्फ़ाज़ बनोगे।
मेरे एक आंसू पर पूरी कायनात बदलने वाले...
क्या तुम ताउम्र मेरी खुशीयों की वज़ह बनोगे।
मैं तो फना हो जाऊं तुम्हारी इक झलक देखकर...
क्या तुम मेरे करवा चौठ का चांद बनोगे।
अज़ल से कर रही मेरी रूह इंतजार-ए-इश्क़ कि...
सुनो न...
क्या तुम मेरी मांग अपने इश्क़ से सिंदूरी करोगे।
❤️❤️❤️-
सुनो न...
खुशियों के हर एहसास को तेरे कदमों में ले आएंगे
अज़ाब से पड़ी तेरी वीरान-ए-जिन्दग़ी को फ़िर से हम सजाएंगे
तुम इश्क़ करो तो सही..।
जिससे तेरी जीत हो मुकम्मल हम वो राह बन जाएंगे
इक जन्म तो क्या हम क़यामत तक साथ निभाएंगे
तुम इश्क़ करो तो सही..।
गर हो इजाज़त तेरी वफ़ा में हम पूरी महफ़िल सजा देंगे
आसमां के सारे सितारे हमारे इश्क़ की गवाही भी देंगे
तुम इश्क़ करो तो सही..।
सुनो न..इस बार मोहब्बत तुम करना मुकम्मल हम कर जाएंगे
बस तुम इश्क़ करो तो सही..।
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सुनो न...
इक अरसे बाद आज दिल ए जज़्बात लिखती हूं..
लफ्ज़ों से जो बयां न हो कुछ ऐसे अल्फाज़ लिखती हूं..
तेरे इश्क़ में वो बनारस की घाट
और चांद संग हमारी पहली मुलाक़ात लिखती हूं..
मसला उलझा हुआ है इश्क़ में कुछ यूं
फिर भी कलम से हक़ीक़त कमाल लिखती हूं..
ना किस्से ना कहानी ना कोई ख़्वाब
बस इश्क़ में तुम्हें और तुम्हारा नाम लिखती हूं..
फिर भी लोग कहते हैं वाह वाह बहुत ख़ूब
क्या वाकई मैं बेमिसाल लिखती हूं..?
❤️❤️❤️-
सुनो न...
इश्क़ में दर्द तो होगी ही ए-हयात
इस काफ़िर की तुम इबादत जो हो..।
तेरे जाने के बाद भी हम ज़िंदा हैं
इस लम्हात-ए-ज़ीस्त की वज़ाहत जो हो..।
ख़ैर जो भी हो जैसे भी हो
इस दीवाने क़ल्ब की तुम ही राहत जो हो....।
❤️❤️❤️-