अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम्।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर।।8.4
हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन नश्वर वस्तु
(पंचमहाभूत) अधिभूत और पुरुष
अधिदैव है इस शरीर में मैं ही अधियज्ञ हूँ।
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यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।।7.21
जो जो (सकामी) भक्त जिस जिस (देवता के)
रूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है उसउस
(भक्त) की मैं उस ही देवता के प्रति श्रद्धा को
स्थिर करता हूँ।
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मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः।।9.4
यह सम्पूर्ण जगत् मुझ (परमात्मा) के अव्यक्त
स्वरूप से व्याप्त है भूतमात्र मुझमें स्थित है?
परन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूं।
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अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप।
अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि।।9.3
हे परन्तप इस धर्म में श्रद्धारहित पुरुष
मुझे प्राप्त न होकर मृत्युरूपी संसार में
रहते हैं (भ्रमण करते हैं)।
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ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।8.13
जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का
उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण
करता हुआ शरीर का त्याग करता है वह
परम गति को प्राप्त होता है।
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इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत।
सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप।।7.27
हे परन्तप भारत इच्छा और द्वेष से उत्पन्न
द्वन्द्वमोह से भूतमात्र उत्पत्ति काल में ही
संमोह (अविवेक) को प्राप्त होते हैं।
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पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु।।7.9
पृथ्वी में पवित्र गन्ध हूँ और अग्नि में तेज हूँ
सम्पूर्ण भूतों में जीवन हूँ और तपस्वियों में मैं तप हूँ।
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राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्।।9.2
यह ज्ञान राजविद्या (विद्याओं का राजा) और राजगुह्य (सब गुह्यों अर्थात् रहस्यों का राजा) एवं पवित्र? उत्तम? प्रत्यक्ष ज्ञानवाला और धर्मयुक्त है? तथा करने में सरल और अव्यय है।
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अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्।।7.24
बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम (सर्वोत्तम)
अव्यय परम भाव को न जानते हुए मुझ
अव्यक्त को व्यक्त मानते हैं।
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ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानम् इदं वक्ष्याम्यशेषतः।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यत् ज्ञातव्यमवशिष्यते।।7.2
मैं तुम्हारे लिए विज्ञान सहित इस ज्ञान को
अशेष रूप से कहूँगा जिसको जानकर यहाँ
(जगत् में) फिर और कुछ जानने योग्य (ज्ञातव्य)
शेष नहीं रह जाता है।
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