की दे दी चाँदनी की रिदा,
दिल की चादर अभी उतारी है,
कल रात नई दिल्ली पे गुजारी है।
कल हर वाक्या तुम्हारा था,
आज की दास्तां हमारी है,
क्योंकि नई दिल्ली पे रात गुजारी है।
अजब सी खुमारी, करवटें भी न ले पाया,
कुछ तन्हा पर कुछ खास गुजारी है,
कल रात नई दिल्ली पे गुजारी है।
न नींद आयी न ख्वाब कोई,
ये रात जो चुप सी चमन में तारी है,
कल रात नई दिल्ली पे गुजारी है।
मजलूम बेबस न समझ,वक्त आएगा अपना भी,
ये रात जो सवालो से संवारी है,
कल रात नई दिल्ली पे गुजारी है।
जुगनू से पूछना हाल मेरा,
गुज़रे पलो में आह निकली है,
तकिये की जगह,स्टेशन की फर्श ही प्यारी है,
कल रात नई दिल्ली पे गुजारी है।।-
17 AUG 2019 AT 18:52