क्या लिखूं ज़िन्दगी के बारे में ?
बेरंग तो नही कह सकती इसे लेकिन कुछ रंगों की कमी है
खाली ज़िंदगी को किताबो की ढेर ने भरा है
दुखी तो नही कह सकती लेकिन कुछ खुशियो की कमी है
ज़िंदगी किस राह पर है कहना मुश्किल है
चूहों के दौर में जीतना मुश्किल है
घर मे गर्मी है बाहर की धूप में निकलना मुश्किल है
क्या लिखू ज़िन्दगी के बारे मे?
लोग तो बहुत है लेकिन रिश्तो की कमी है
प्यार तो बहुत है लेकिन स्नेह की कमी है
निभाना है हमे समाज के तौर तरीकों को
अपनाना है अनेक अंजानो को
दोस्त तो अनेक है उस एक कि कुछ कमी है
दिल फेकने वाले हज़ार है बस तुम्हारी कमी है
क्या लिखूं ज़िन्दगी के बारे में?
सब होकर भी इसमे कुछ तो कमी है।-
फिर दर्द की लहर दौड़ी है,
फिर एक लड़की की कराहट गूँजी है,
फिर उसके धर्म पर ,
उसके जन्म पर ,
उसके कपड़ो पर सवाल उठा है,
फिर एक लड़की की इज़्ज़त को रौंदा है।
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आज फिर लोग कैंडल लेके सड़कों पर उतर गए है,
क्या होगा इस से न्यूज़ वालो को मुद्दा मिलेगा सोशल मीडिया पर लाइक।
चलिए कुछ ऐसा करते है ,
की ना न्यूज़ वालो को मुद्दा मिले ना सोशल मीडिया पर, लाइक आज के बाद ऐसा भारत हो जहा हर लडक़ी को घर सुरक्षित पहुँचने का डर ना सताये ।
देर हो जाने पर माँ पिता के दिल मे बैचनी ना दौर जाए,
कपड़े छोटे हैं ये देखकर कोई सवाल ना उठाये।
शरीफ हो या बदतमीज़ कोई,
बल्तकारी टैग ना दे जाए ।
इंसाफ ऐसा हो इस बार की हर,
बल्तकारी की रूह कांप जाए ।
उसके दिमाग मे ये ख़्याल आने से,
पहले उसको कानून व्यवस्था की याद आजाये।-
ख़ुमार इश्क़ का था..
आरज़ू तुम्हारा..
आस था आशियाने का..
आसरा तुम्हरा..
इश्तियाक़ उफ़्क पे था..
गुलजार हो गए चमन..
जुस्तुजू और बढ़ गयी..
वक़्त आ के थम गया..
अल्फ़ाज़ ज़ुबा पर आगये..
तब्दील हो गया वो किस्सा रुसवाई का..
मिट गई दूरियां..
इश्क़ अब ईबादत था..
पनाह मिल गयी थी अब..
इश्क़ शुरुर बन गया..-
आख़िर भूल ही गये..
जाते जाते दूर निकल ही गये...
तम्मना थी उम्र भर साथ रहने की..
लेकिन वक़्त के साथ बदल ही गये...!
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उसकी आँखों मे एक कहानी हैं ।
उसकी बातों में एक नाराजगी हैं।
वो मासूम तो हैं लेकिन नादान नही हैं।
वो जानती सब है मगर चुप हैं।
वो समझती भी है समझा भी सकती हैं।
लेकिन वक़्त के इंतज़ार में है।
वो ज्वाला हैं जो धरती के गोद मे हैं।
वो झूकी हैं मगर गिरी नही ।
वो कोई दुर्गा कोई सरस्वती नही है ।
वो एक आम लड़की है।-
हाँ मैं बेटी हूँ तुम्हारी,
जिसे तुमने जमाने से बचने के लिए,
पैदा होने से पहले मारने का सोचा ।
हाँ मैं बेटी हूँ तुम्हारी,
जिसकी शादी नहीं होने के डर से,
पढ़ने से रोका।
हाँ मैं बेटी हूँ तुम्हारी,
जिसके साथ कुछ गलत हो जाने के भय से,
खुली हवा के स्वाद से वंचित रखा।
हाँ मैं बेटी हूँ तुम्हारी,
जिसे हर दर्द से बचने के बाद भी,
हर कांचीका में दुर्गा स्वरुप पूजने के बाद भी,
कुछ दरिदों नामर्दो के हाथ से ना बचा पाई,
तुम !
हाँ वही अभागी बेटी हूँ मैं तुम्हारी।-
आंखों में अश्क हैं
दिल मे तमन्ना
रूह में तुम हो
हकीकत नही बस एक सपना...!-