“सांसें दो”
मैं मरा नहीं हूँ,
पर मेरी सांसें कोई और ले रहा है…
हर रात जब मैं सोता हूँ,
मेरे पास एक और साँस चलती है।
मेरे कमरे में कौन है… जो मेरी नींद में भी ज़िंदा है?
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लोरी कौन गा रहा है?
घर में सिर्फ मैं और मेरी बेटी हैं…
लेकिन हर रात कोई उसे लोरी गा कर सुलाता है,
जबकि मैं तो सो चुकी होती हूँ।
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श्मशान वाली आत्मा
गाँव के एक कोने में एक पुराना मकान था, जिसे सब "श्मशान वाला घर" कहते थे। कहते हैं, वहाँ एक आत्मा रहती थी — चंदा नाम की औरत, जो बरसों पहले अपने पति की चिता में कूद गई थी।
एक दिन, गाँव में एक नवविवाहित जोड़ा आया — आरव और कविता। वे उस घर को सस्ते किराए में लेकर रहने लगे। गाँववालों ने डराया, पर कविता ने हँसते हुए कहा, “भूत-प्रेत सिर्फ कहानियों में होते हैं।”
रातें बीतती गईं, पर एक रात कविता को नींद में किसी औरत के रोने की आवाज़ सुनाई दी। वह उठी, तो देखा — आँगन में एक सफेद साड़ी पहने औरत चुपचाप खड़ी है, जिसकी आँखों से राख बह रही थी।
कविता डर के मारे काँपने लगी, पर आत्मा बोली — “मैं सिर्फ अपने नाम की चूड़ी ढूंढ़ रही हूँ। मेरी आत्मा श्मशान में फँसी है जब तक वो मुझे नहीं मिलेगी।”
अगले दिन कविता ने पुरानी चीज़ें टटोलनी शुरू कीं और आखिरकार एक टूटी चूड़ी मिली, जिस पर “चंदा” खुदा था। जैसे ही कविता ने वो चूड़ी श्मशान में ले जाकर राख में रखी, तेज़ हवा चली और आसमान साफ़ हो गया।
उस रात फिर कोई आहट नहीं आई। गाँववाले हैरान थे — "श्मशान वाली आत्मा अब कभी नहीं दिखी।"
कविता ने मुस्कुरा कर कहा — “कभी-कभी डर को समझने की ज़रूरत होती है, भागने की नहीं।”
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Andhera toh sirf ek bahaana tha…
Log tab bhi kho gaye jab sab kuch roshan tha.”
( “Darkness was just an excuse…
People still disappeared even when everything was lit.”)
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