वो खिड़की
रुचि गर्मी की छुट्टियों में अपने नाना-नानी के पुराने गांव आई थी। उनका पुराना घर बड़ा था, लेकिन एक कमरा हमेशा बंद रहता था — ऊपर वाली मंज़िल पर, वो जिसमें एक पुरानी लकड़ी की खिड़की थी।
एक रात बिजली चली गई। रुचि को प्यास लगी, तो वो उठकर रसोई की ओर बढ़ी। तभी उसने ऊपर से किसी के चलने की आवाज़ सुनी। डरते-डरते उसने ऊपर देखा, तो वही पुरानी खिड़की खुली थी… जबकि उसे हमेशा बंद रखा जाता था।
वो धीरे-धीरे ऊपर गई, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, अंदर सिर्फ एक पुरानी कुर्सी थी — और उस पर बैठी थी एक औरत… जिसकी आँखें नहीं थीं, सिर्फ गड्ढे थे।
औरत बोली, “मैं रुचि नहीं हूँ… लेकिन तुम मेरी तरह बन सकती हो…”
रुचि की चीख पूरे घर में गूंज गई — और अगली सुबह वो खिड़की फिर से बंद थी… पर अब उसमें से किसी की आँखें झाँक रही थीं।
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M.A : ( Hindi Literature )|
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आधी रात की बिल्ली
रात के ठीक 12 बजे, रागिनी अपने कमरे में अकेली पढ़ाई कर रही थी। खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी और चारों ओर सन्नाटा पसरा था। तभी खिड़की के बाहर कुछ हिला। उसने झाँककर देखा—एक काली बिल्ली उसकी ओर टकटकी लगाए देख रही थी। उसकी आँखें चमक रही थीं जैसे अंगारे हों।
रागिनी ने सोचा, "साधारण बिल्ली होगी", और वापस पढ़ने लगी। लेकिन अगले ही पल खिड़की अपने आप खुल गई और वह काली बिल्ली कमरे के अंदर आ गई। वह सीधा उसकी मेज़ पर बैठ गई और उसकी किताब पर पंजा मारकर बोली—"यह जगह अब तेरी नहीं रही..."
रागिनी डर के मारे पीछे हट गई। तभी कमरे की बत्ती बुझ गई और सारा कमरा ठंडा पड़ गया। जब उसने माचिस जलाकर रौशनी की, तो देखा—बिल्ली गायब थी, मगर दीवार पर खून से लिखा था: "मैं लौट आई हूँ..."
रागिनी की चीख सुनकर सब दौड़े आए, लेकिन तब तक वह बेहोश हो चुकी थी… और काली बिल्ली? वह हवेली की छत पर बैठी फिर से टकटकी लगाए देख रही थी।
अगली रात, कोई और उसे देखे बिना न रह पाया।-
"डिब्बा नंबर आठ"
रात का वक्त था। ट्रेन अपने पूरे वेग से मुंबई की ओर बढ़ रही थी। डिब्बा नंबर आठ लगभग खाली था। बस एक बुज़ुर्ग महिला, एक युवक और एक नींद में डूबी बच्ची।
अचानक ट्रेन एक छोटे स्टेशन पर रुकी, जहाँ कोई चढ़ा नहीं, पर एक अजीब सी ठंडी हवा डिब्बे में भर गई। युवक ने खिड़की की ओर देखा—कोई नहीं था, लेकिन उसे महसूस हुआ जैसे कोई पास से गुज़रा हो।
कुछ देर बाद वह बुज़ुर्ग महिला उठी और बोली, “इस डिब्बे में मत रहो बेटा… यह आत्मा का डिब्बा है।”
युवक चौंका, “क्या मतलब?”
महिला ने धीरे से बताया, “एक साल पहले इसी डिब्बे में एक लड़की की आत्महत्या हुई थी। तब से हर महीने की सात तारीख को वह आत्मा सफर करती है... आज वही तारीख है।”
अभी वे बात कर ही रहे थे कि डिब्बे की बत्तियाँ झपकने लगीं। नींद में सोई बच्ची उठकर दरवाज़े की ओर चल पड़ी—बिलकुल बेहोशी में। युवक दौड़ा और बच्ची को थाम लिया।
अचानक उसकी आंखों के सामने एक धुंधली सी परछाई आई—एक लड़की, जिसके गले में फंदा था। उसकी आँखें सीधे युवक की आँखों में झाँक रही थीं।
महिला ने मंत्र बुदबुदाया, और परछाई धीरे-धीरे गायब हो गई। बच्ची रोने लगी, लेकिन अब सब सामान्य था।
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जंगल की पुकार
रात का अँधेरा गहराता जा रहा था।
सिया और उसके दोस्त पिकनिक से लौटते वक्त शॉर्टकट लेने के
चक्कर में एक पुराने जंगल में भटक गए।
मोबाइल की लाइट भी अब कमज़ोर पड़ने लगी थी।
तभी अचानक, दूर कहीं से किसी लड़की के रोने की दर्दनाक
आवाज़ सुनाई दी।
"कोई मदद माँग रहा है," सिया ने कहा।
मगर राहुल ने डरते हुए टोका, "ये जगह ठीक नहीं लग रही…"
सिया ने आवाज़ की दिशा में बढ़ना शुरू कर दिया। पेड़ों के बीच एक छायामूर्ति दिखी—एक लड़की, सफेद कपड़ों में, बाल चेहरे पर बिखरे हुए।
"तुम ठीक हो?" सिया ने पूछा।
लड़की ने धीरे-धीरे सिर उठाया। उसकी आँखें खून से भरी थीं। अगले ही पल वह गायब हो गई।
पीछे पलटकर देखने पर, सिया अकेली थी—राहुल और बाकी सब कहीं ग़ायब हो चुके थे।
अब रोने की आवाज़ सिया के अंदर से आ रही थी।
अगले दिन अखबार की खबर थी:
'चार दोस्त लापता, आखिरी बार पुराने जंगल के पास देखे गए।'-
श्मशान वाली आत्मा
गाँव के एक कोने में एक पुराना मकान था, जिसे सब "श्मशान वाला घर" कहते थे। कहते हैं, वहाँ एक आत्मा रहती थी — चंदा नाम की औरत, जो बरसों पहले अपने पति की चिता में कूद गई थी।
एक दिन, गाँव में एक नवविवाहित जोड़ा आया — आरव और कविता। वे उस घर को सस्ते किराए में लेकर रहने लगे। गाँववालों ने डराया, पर कविता ने हँसते हुए कहा, “भूत-प्रेत सिर्फ कहानियों में होते हैं।”
रातें बीतती गईं, पर एक रात कविता को नींद में किसी औरत के रोने की आवाज़ सुनाई दी। वह उठी, तो देखा — आँगन में एक सफेद साड़ी पहने औरत चुपचाप खड़ी है, जिसकी आँखों से राख बह रही थी।
कविता डर के मारे काँपने लगी, पर आत्मा बोली — “मैं सिर्फ अपने नाम की चूड़ी ढूंढ़ रही हूँ। मेरी आत्मा श्मशान में फँसी है जब तक वो मुझे नहीं मिलेगी।”
अगले दिन कविता ने पुरानी चीज़ें टटोलनी शुरू कीं और आखिरकार एक टूटी चूड़ी मिली, जिस पर “चंदा” खुदा था। जैसे ही कविता ने वो चूड़ी श्मशान में ले जाकर राख में रखी, तेज़ हवा चली और आसमान साफ़ हो गया।
उस रात फिर कोई आहट नहीं आई। गाँववाले हैरान थे — "श्मशान वाली आत्मा अब कभी नहीं दिखी।"
कविता ने मुस्कुरा कर कहा — “कभी-कभी डर को समझने की ज़रूरत होती है, भागने की नहीं।”
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शहर में फटा बादल
राजधानी के पॉश इलाके में रात के करीब दो बजे अचानक बादल फटा। बारिश इतनी तेज़ थी कि सड़कों पर सैलाब आ गया। मगर सबसे अजीब बात ये थी कि जिस इमारत के ऊपर बादल फटा, वहाँ सिर्फ एक फ्लैट था—नंबर 704।
पड़ोसियों ने बताया, उस फ्लैट में एक लड़की "रिया" अकेली रहती थी। जब फायर ब्रिगेड और पुलिस पहुँची, तो फ्लैट का दरवाज़ा अंदर से बंद था। दरवाज़ा तोड़ा गया, तो अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था।
रिया की लाश बिस्तर पर थी, लेकिन उसका चेहरा किसी ने नोच दिया था—ऐसा लगा मानो कोई जानवर नहीं, कोई बदला लेने वाली ताक़त हो। दीवार पर पानी से लिखा था—
"मैं फिर आऊँगा… जब अगला बादल फटेगा!"
CCTV में देखा गया कि फ्लैट में कोई दाख़िल नहीं हुआ, लेकिन एक काली परछाईं अचानक छत से उतरी थी और गायब हो गई।
तब से वो फ्लैट बंद है… मगर जब भी शहर में बादल फटते हैं, फ्लैट नंबर 704 की लाइट अपने-आप जलने लगती है… और कोई एक चीख शहर की नींद तोड़ देती है।-
कब्रिस्तान में रोती आत्मा
गाँव के बाहर पुराने कब्रिस्तान में
हर रात एक औरत के रोने की आवाज़ आती थी।
कहते हैं, वह आत्मा अपने अधूरे प्यार के इंतज़ार में भटक रही है।
एक रात पत्रकार रवि सच्चाई जानने वहाँ पहुँचा। अचानक,
एक टूटी कब्र के पास उसे एक
सफ़ेद साड़ी में महिला की
धुँधली परछाई दिखी।
"मैं राधा हूँ,"
वह बोली। "जिसे प्यार में धोखा मिला।
मैं अब भी उसका इंतज़ार कर रही हूँ…"
इतना कहकर वह धुँध में बदलकर
गायब हो गई। रवि समझ गया
कुछ वादे अगर अधूरे रह जाएँ,
तो आत्माएँ रोती रह जाती हैं।-
झील की पुकार
हर साल गर्मियों में गांव के बच्चे उस झील के पास खेलने जाते थे, पर रात होने से पहले लौट आते थे। झील के बारे में कहा जाता था कि वह किसी की आत्मा को बुला लेती है।
एक बार राधिका नाम की लड़की सूरज डूबने के बाद भी झील किनारे अकेली बैठी रही। उसने झील से आती धीमी आवाज़ सुनी "राधिका… आओ…"। वह जैसे किसी नशे में झील की ओर बढ़ी। अगली सुबह उसकी चप्पलें झील किनारे मिलीं, पर वह कभी नहीं मिली।
लोग कहते हैं, आज भी झील के किनारे रात में कोई खड़ा हो, तो राधिका की फुसफुसाती आवाज़ सुनाई देती है "यहाँ बहुत सुकून है… आ जाओ…"-
सफ़ेद कफ़न में
रात के बारह बजे श्मशान घाट में सन्नाटा पसरा था।
एक सफेद कफ़न में लिपटी लाश चुपचाप चिता पर रखी थी।
जैसे ही पुजारी ने मंत्र पढ़ने शुरू किए, अचानक हवा तेज़ चलने लगी।
लकड़ियाँ अपने आप हिलने लगीं और कफ़न में लिपटा शरीर धीरे-धीरे उठ बैठा।
सबके होश उड़ गए।
कफ़न से झाँकती आँखें लाल थीं, और एक फुसफुसाती आवाज़ आई —
"मुझे जलाए बिना कोई नहीं जाएगा..."
जो जहाँ था, वहीं जड़ हो गया।
किसी तरह पुजारी ने हिम्मत जुटाई और अग्नि दी।
कफ़न जलते ही चीखती हुई वह आत्मा राख में बदल गई।
लेकिन कहते हैं, उस रात के बाद से श्मशान घाट में अक्सर कोई सफेद साया घूमता दिखता है...
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श्मशान के पास एक तांत्रिक
गांव के बाहर पुराने श्मशान में तांत्रिक भैरवनाथ एक रात साधना करने पहुँचा।
राख से त्रिकोण बनाकर उसने मंत्र पढ़े। अचानक भूतों की कराह सुनाई दी। दो आत्माएँ प्रकट हुईं — एक बूढ़ा, एक जवान लड़की।
भैरवनाथ ने उन्हें वश में करने की कोशिश की, लेकिन तभी एक गुस्सैल भूत आया — वही, जिसे भैरवनाथ ने पहले धोखे से मारा था।
भूत ने हमला किया। दीपक बुझा। एक चीख गूंजी... फिर सन्नाटा।
सुबह, श्मशान में सिर्फ राख और भैरवनाथ की जली माला मिली।
आज भी अमावस की रात वहाँ उसकी परछाईं घूमती है...-