Laxmi Jaiswal   (Scarypumpkinbylaxmi)
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Joined 16 September 2024


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Joined 16 September 2024
6 JUL AT 1:34

"अनकही सी बातें"
कॉलेज का पहला दिन था।
नीली साड़ी में वो हिंदी की मैम क्लास में आईं,
उनकी आंखों में शांति थी और शब्दों में जादू।
आरव, एक सीधा-सादा छात्र,
जो किताबों से प्यार करता था,
पर उस दिन से उसकी नज़रों में
किताबों से ज़्यादा उसकी टीचर बस गईं।
हर दिन वो पहली बेंच पर बैठता,
हर शब्द जैसे उसके दिल पर उतरता।
उसे समझ नहीं आता —
वो ज्ञान से प्रभावित है, या उस मुस्कान से?
एक दिन प्रोजेक्ट के बहाने वो स्टाफ रूम तक पहुंचा,
कहना तो बहुत कुछ था… पर बस इतना बोला,
"मैम, आप जब पढ़ाती हैं,
तो मुझे शब्द नहीं, भाव सुनाई देते हैं…"
मैम मुस्काईं, पर आंखों में एक रेखा सी खिंच गई।
उन्होंने कहा, "आरव, शिक्षक और छात्र का रिश्ता
सबसे पवित्र होता है —
इसे भावना की ऊंचाई पर रहने दो, दूरी में नहीं।"
आरव समझ गया —
प्रेम सिर्फ पाने का नाम नहीं,
सम्मान देने का भी है।
वो मैम की हर क्लास में और ध्यान से बैठने लगा,
अब उसके लिए वो एक प्रेरणा थीं —
जिनसे उसने सीखा क्या होता है मर्यादित प्रेम।

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6 JUL AT 1:29

"दर्द बिकता है..."

दर्द यहाँ सबसे महँगी चीज़ है,
मुस्कानों की अब कोई कीमत नहीं।
हर आह को बना दो सौदा,
तो पढ़ने वाले कहेंगे—"क्या कहानी है, वाह!"

वो जो टूटी थी रात की चुप्पियों में,
अब बेच दो उसे टाइटल में "True Based Story" कहके।
लोग आँसू नहीं पोंछेंगे तुम्हारे,
पर कमेंट में पूछेंगे—"Next part कब आएगा?"

तुम्हारे टूटे सपनों पर क्लिक आएंगे,
तुम्हारी तन्हाई पर रील बनाई जाएगी।
जो जीया, वो गुमनाम है,
जो बिक गया, वो "फेमस नाम" है।

अब जब कलम उठे, तो ये मत सोचो क्या सच है,
बस ये सोचो—कितने पैसे देगा ये प्लॉट बचा है।
क्योंकि कहानी तभी जिंदा रहती है,
जब कोई उसे पढ़ने के लिए पैसे देता है।

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6 JUL AT 1:27

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1 JUL AT 19:17

तीन लोग एक कमरे में थे,
एक ने दूसरे को मार दिया,
फिर भी कमरे में तीन परछाइयाँ थीं...

कोई आया नहीं,
कोई गया नहीं,
लेकिन तीसरी परछाई…
धीरे-धीरे हँस रही थी।

बताओ… तीसरी परछाई किसकी थी?

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1 JUL AT 19:13

मैं बिना पैरों के चलती हूँ,
बिना आँखों के देखती हूँ,
बिना जुबान के चीखती हूँ,
और रात के सन्नाटे में हँसती हूँ।

कोई मेरा दरवाज़ा खटखटाए,
तो दरवाज़ा अपने आप खुलता है,
लेकिन जो अंदर जाता है...
वो फिर बाहर नहीं आता है।

बताओ तो सही... मैं क्या हूँ?

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22 JUN AT 16:05

“सांसें दो”

मैं मरा नहीं हूँ,
पर मेरी सांसें कोई और ले रहा है…
हर रात जब मैं सोता हूँ,
मेरे पास एक और साँस चलती है।
मेरे कमरे में कौन है… जो मेरी नींद में भी ज़िंदा है?

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22 JUN AT 16:00

लोरी कौन गा रहा है?

घर में सिर्फ मैं और मेरी बेटी हैं…
लेकिन हर रात कोई उसे लोरी गा कर सुलाता है,
जबकि मैं तो सो चुकी होती हूँ।

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8 JUN AT 15:20

एक लड़का रोज़ अपने कमरे के आईने में देखता था।
एक दिन उसने देखा —
आईने में उसकी आंखें पलकें नहीं झपका रहीं थीं,
जबकि वो खुद लगातार पलकें झपका रहा था।

वो घबराकर पीछे हटा,
आईने में मौजूद ‘उसने’ मुस्कुराकर कहा:
"अब मेरी बारी है बाहर आने की..."क्या वो

अब भी असली है, या आईना असली बन गया...?

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8 JUN AT 15:15

तीन दोस्त एक पुराने बंगले में रुके।
रात को सेल्फ़ी ली — तस्वीर में चार चेहरे दिखे।

अगली सुबह एक दोस्त पागल हो गया,
दूसरा गायब... और तीसरा बस हँसता रहा।

चौथा चेहरा किसका था...?

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6 JUN AT 16:35

पुराना हवेली वाला मकान सालों से बंद पड़ा था। गाँव में किसी की हिम्मत नहीं होती कि शाम ढलने के बाद वहाँ जाए। कहा जाता था, तहखाने में किसी की आहट सुनाई देती है, जैसे कोई ज़ंजीरों में बंधा हो।

एक बार गाँव के चार किशोरों ने शर्त लगाई – जो तहखाने में जाकर सबसे अंदर वाले कमरे को छुएगा, वही सबसे बहादुर कहलाएगा।

चारों गए। पहला बोला – “यहाँ सिर्फ धूल है।”

दूसरा – “यहाँ ठंड क्यों बढ़ रही है?”

तीसरा – “यहाँ किसी की साँसों की आवाज़ आ रही है।”

चौथा चुप रहा। वो आगे बढ़ा और दरवाज़ा खोला।

अंदर एक कुर्सी थी — और उस पर बैठा कोई आदमी, गर्दन झुकी हुई, जैसे सो रहा हो।

चौथे ने कहा, “सुनो… कौन हो तुम?”

कोई जवाब नहीं आया।

वो पास गया, हाथ हिलाया – लेकिन तब तक बाकी तीनों दोस्त दरवाज़े से बाहर भाग चुके थे। बाहर आकर उन्होंने पूछा – “वो चौथा कहाँ है?”

पर याद आया – वो तो कभी था ही नहीं।
चार गए, तीन लौटे, एक जो कभी था ही नहीं।
तहखाने की कुर्सी पर बैठा, वो कौन है जो कहीं नहीं।
जो बात करे बिना बोले, जिसे देख कोई बोले – नहीं-नहीं!

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