ईसा मसीह औरत नहीं थे, वरना मासिक धर्म
ग्यारह बरस की उमर से, उनको ठिठकाए ही रखता
देवालय के बाहर!
बेथलेहम और येरुशलम के बीच, कठिन सफर में उनके
हो जाते कई तो बलात्कार और उनके दुधमुँहे बच्चे
चालीस दिन और चालीस रातें जब काटते सड़क पर,
भूख से बिलबिलाकर, मरते एक-एक कर
ईसा को फुर्सत नहीं मिलती, सूली पर चढ़ जाने की भी
मरने की फुर्सत भी, कहाँ मिली सीता को
लव-कुश के तीरों के, लक्ष्य भेद तक !
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