तेरी गली में पेड़-खुला आसमान-सितारे,
दिन में पत्ते गिन लेते हैं और रात में तारे।-
इश्क़_में
हुजूर ने हूर से पूछा,
"क्या तुम्हें मात देना आता है ?"
हूर वजीर और फर्जी दोनों दे आई।
हुजूर ने हूर से पूछा,
"क्या तुम्हें जवाब देना आता है ?"
हूर ईंट और पत्थर दोनों दे आई।
हुजूर ने हूर से पूछा,
"क्या तुम्हें वार करना आता है ?"
हूर तलवार और खंजर दोनों दे आई।
हुजूर ने हूर से पूछा,
"क्या तुम्हें जान लेना आता है ?"
हूर खुद ही उठ कर आ गई।-
इश्क़ _में
(गीत)
बिजुका रे...देख दखिन की ओर,
दे संदेशा.. आ रह्या ह म्हारा सिरमोर,
म तन चूनड़ी का पाग पहरा लगा दयूं पंख मोर...
बिजुका रे...देख उतरादे की ओर,
दे संदेशा.. आ रह्या ह म्हारा सिरमोर,
म तेरा कुरता म मोती साग लगा दयूं सांची कोर...
बिजुका रे...देख पछिम की ओर,
दे संदेशा..आ रह्या ह म्हारा सिरमोर,
म तेरे पटका म सजा दयूं म्हारो भलकतो बोर ...
बिजुका रे...देख पूरब की ओर,
दे संदेशा..आ रह्या हैं म्हारा सिरमोर,
म तेर जूत्यां म हाथा को जड़ दयूं जड़ाऊ जोड़...
बिजुका रे...देखो चारों ओर,
देे ओ संदेशा.. आ रह्या हैं म्हारा सिरमोर...
म तेरे खातर बता दे काई कांई करूं ओर...-
इश्क में
मैं सदियों से,
धरती-सी घूम रही हूँ,
तुम सूरज-से घूर रहे हो।-
इश्क में
हुजूर,
सच कहने तक
झूठ ही कह दो,
आवाज ही
सुन लेंगे।
तारीफ करने तक
बुराई बता दो,
काबिल होने का
रियाज ही
कर लेंगे।
जब तक हुजूर
दूरी करेंगे,
तब तक
जी-हुजूरी करेंगे।-
इश्क़_में
जब मैं तुम्हें लिखती हूँ, कलम में सोलह का खून दौड़ता है,
पन्ने की सलवटें निकल जाती हैं, हासिया खूशबू छोड़ता है।-
इश़्क_में
(अर्ज किया है)
ऐसा नहीं है सिर्फ "इश़्क में"
मुझे तेरी याद आई।
उस दिन भी बहुत याद किया,
जब कामवाली नहीं आई।।-
इश्क़_में
मैं ये किसके मन में रहती हूँ,
सब अपने मन की करती हूँ ?-
इश्क़_में
हुजूर मेरे,
यह लो,
जिन्दगी के सफेद पन्ने,
जैसे चाहे रंग भर लो,
कोई शर्त नहीं, पर इच्छा है,
कोई रंग कसैला नहीं होना चाहिए।
हुजूर मेरे,
सरका दो,
प्यार में अपने हाथों से,
मेरे सर से, मेरा आंचल,
कोई शर्त नहीं, पर इच्छा है,
आंचल मेरा मैला नहीं होना चाहिए।
हुजूर मेरे,
दिखा दो,
पूरे होने वाले, नहीं होने वाले,
कैसे भी सपने मेरी आंखो को,
कोई शर्त नहीं, पर इच्छा है,
आंखो का काजल फैला नहीं होना चाहिए।
हुजूर मेरे,
जान लो,
हूर और हुजूर जैसे भी जीए,
हूर -हुजूर का नाम साथ रहे,
कोई शर्त नहीं, पर इच्छा है,
मेरा नाम अकेला नहीं होना चाहिए।-
यूं ही
आंखें बंद कर,
घुटने झुका दिए,
माथा टिका दिया,
हाथ फैला दिए।
लोग कहते हैं,
ऐसा क्या किया ?
मैंने अपना
अहंकार मिटा लिया।
कितना भी उड़ो
देने वाला
दिखा देता है"सतह"।
वाहेगुरु जी-दा खालसा
वाहेगुरु जी-दी "फतह"।
(When visiting golden temple)
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