Hu toh bahut bura main
Pr do chahere nhi rkhta-
निष्कपट-निश्छल, सुदामा सा लाचार हूँ...
मित्र जो दुर्योधन तो, कर्ण का व्यवहार हूँ...
अठारहों पुराण में मैं, व्यास का उपकार हूँ..
जब राम थे व्यथित तो, सुग्रीव का आभार हूँ..
तांडव हूँ शंकर का, डमरू का डंकार हूँ...
तरकश हूँ अर्जुन का, समर का हुंकार हूँ...
खिंचे न चीर कोई, कृष्ण का पुकार हूँ...
वेद भूषित कर्म है, मार्तण्ड का अवतार हूँ...-
तलबगार हैं हम,
तिरे औसाफ़ के यारां ।।
सच बताओ,
कहीं तुम फ़रिश्ता तो नहीं ।।-
गति मति से धीर हूँ,
या कर्ण सा मैं वीर हूँ।।
की हूँ प्रपंचित पार्थ सा,
या भीष्म के निस्वार्थ सा।।
मैं सभ्य हूँ, अवलीन हूँ,
निज कर्म में तल्लीन हूँ।।
पुरुषार्थ मेरा धर्म है,
पुरुषार्थ हीं सत्कर्म है।।-
पाया भी न इश्क़ तुम्हारा
बरसों की छूट गई यारी।।
सपने थे जो उजड़ गए
नींद भी मानो दुत्कारी ।।
दोस्त यार सब यूँ बिछड़े
हो गई वीरां दुनिया सारी।।
हर्ष आँख ग़मगीन कर गई
बस एक बोझ 'ज़िम्मेदारी'।।-
होगा न ख़ुदा कोई, मेरी माँ सा इस जहां में।।
मेरे पेशानी को चुमके, मेरा मुक़द्दर जो सवाँर दे।।-
शामिल हैं बहारों सा,
तेरे हयात में 'मुसाफ़िर' ।।
हूँ नसीब-ए-ख़ास, की
पाया हम-नफ़स तुम सा ।।-
सुबह की कभी लालिमा,
ढलता हुआ कभी शाम हूँ।।
कभी हूँ "विवेकानंद" मैं,
कभी शौर्य हूँ, बेनाम हूँ।।
निश्छल नही, इंसान हूँ,
उन्मुक्त हूँ, की गुलाम हूँ।।
कभी कृष्ण हूँ, मैं प्रेम में,
अवध में कभी "राम" हूँ।।-