कविता क्या है??
खयालों की ज़मीन पर बिखरा.....
उम्मीदों का बीज,
जो अहसास के स्पर्श से लहलहा उठता है।
फिर धीरे धीरे उसमें
शब्द रूपी पत्तियाँ आने लगती है
और भावों के फूल खिलने लगते हैं।
पौधा लहराने लगता है।
कवि की कल्पना का ....
कविता का पौधा.....
इस पौधे को छोड़ वह
फिर से चल पड़ता हैं ।
अपनी ख़यालों की ज़मीन पर ।
उम्मीदों के नए बीज बोने,
नए पौधे पल्लवित करने.....
नई कल्पनाएँ गढ़ने.....
कविता क्या है........-
हम हैं तो हमारी एक हस्ती,
वरना हमारी जिंदगी कुछ भी नहीं,
सिर्फ कागज की एक कश्ती...-
हर पल मैं ख़ुद पे ग़ज़ल लिखता हूँ,
अपने साथ बिताए हर पल लिखता हूँ....-
कहानी खत्म है मेरी,
या अब शुरुवात होने को है?
खंडहर बन गया है जीवन
या गुलिस्तां आबाद होने को है...-
धूप से लड़कर बारिशों का मौसम भी आएगा
ख़ुश होकर जीवन भी एक दिन तुमसे बतियाएगा।
खिलेंगे फूल खुशियों के मन की फुलवारी में
अंतस का हर कोना महकेगा, हरषाएगा।
रख धीरज और कर भरोसा खुद पर, क्योंकि
खुदी होगी बुलंद तो खुदा भी तुम पर इतराएगा।
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शेर की तरह बुंलद दहाड़ कर दो तुम,
पर्वत के सीने को दो फाड़ करदो तुम।
तूफान तिनको की तरह उड़ाने आएंगे,
जमा दो पैर,खुद को पहाड़ करदो तुम॥-
जब नाश शीश पे बैठकर कृत्य हो जाता है,
हो मनुज चाहे देवता हो तभी मृत्य हो जाता है।-
जिंदगी बिना रुके अपनी राह चलती रही,
मैं नासमझ उसे आईना दिखाता रहा...-