बहुत देर ठहर लिए,
बस अब चलना है,
चलने के नाम से
क्यों मन घबराता है,
यह तो आना और जाना है,
न जाने आए थे कहां से,
और कहां जाएंगे,
पता नहीं,
मगर चलना तो है,
रुकना नहीं,
बस अब चलना है। कि
रखूं कब तक उलझा कर खुद को
दुनिया के हिसाब में,
जो समझ ही आता नहीं।
क्या लेना है, क्या देना है,
पता नहीं।
क्या पाना है, क्या चुकाना है,
पता नहीं,
कौन लेकर जाएगा,
कौन देने आया है,
पता नहीं।।— % &-
29 JAN 2022 AT 0:07