जब भी लिखना छोड़ देते हैं
लिखना भूल जाते हैं
शब्द इधर उधर
तीतर- बीतर हो कर
बिखर जाते हैं
उतरते नही दिल से शब्द
शब्द गुमसुम हो जाते हैं
कितने भी यत्न करे
कुछ लिख नही पाते हैं
शायद रूह मर गयी मेरी
या उसमें दर्द नही है
दर्द में शब्द अपने आप
उमड़ आते हैं
उतरते चले जाते हैं
अपने आप पन्नो पर
फिर रोके से भी कहा
रुक पाते हैं
छलकते है आँखों से यूँ पैमाने
बेमौसम भी बरस जाते हैं
मर जाती है जब
ज़िस्म में रूह
शब्द बेजान हो जाते हैं
कैद होकर रह जाते है
दम तोड़ देते हैं शब्द
फिर वो कभी भी
पेज पर नही उभर पाते हैं-
17 SEP 2021 AT 18:41
1 DEC 2020 AT 23:42
रात का चादर ओढ़े जगती है ये अखियां
पिया तेरी याद में बहाती आंसुओं की झरना...
ना चेन मीले दीन को ना सुकुन निशा की खामोशी में
तीतर बितर ओझल मन स्तब्ध रह जाती ये अखियां...-
11 AUG 2017 AT 8:42
मैं तीतर तीतर हो गया ,
वो बक्सा भीतर खो गया।
हुआ मालूम दरजा इश्क़ का,
जब मैं हिजर का हो गया।-