ओंकार, बगल में चंदन, पीछे रूपा और नाउन सभी रुक गए। द्वार रोके चौखट पर खड़ी गुंजा की ओर ओंकार ने ताका तो बोली "यह कोहबर का द्वार है पहुना, इसे ऐसे नहीं लाँघने पाओगे! यहाँ दुआर पढ़ना पड़ता है।"
बात न समझ पाने के कारण ओंकार ने गुंजा की ओर फिर देखा तो बोली, "पढ़े लिखे हो तो कोई दोहा, सवैया या कवित्त सुना दो।"-
20 SEP 2020 AT 15:14