Tabrez Ahmedدہلوی  
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Joined 12 February 2019


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6 JUN 2022 AT 21:51

ये आंखें यूं ही नम नही होते,
इनके करने वाले बारहम नही होते।

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6 JUN 2022 AT 21:48

हर किसी को ख़ास ना कह,
दूर को दूर ही कह,पास ना कह।
मुहब्बत में अब सिर्फ़ खोवाहिश है,
ऐसी मुहब्बत को मुहब्बत का अहसास ना कह।
तू जीत जाएगा अगर ख़ुद से नही हारेगा,
हर हाल में ख़ुद को निराश ना कह।
*तबरेज़ अहमद*

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6 JUN 2022 AT 21:43

रात की सुकून को पाने के लिए,
ऐ ज़िंदगी कितनी शाम को खोया है हमने।

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6 JUN 2022 AT 21:43

रात की सुकून को पाने के लिए,
ऐ ज़िंदगी कितनी शाम को खोया है हमने।

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6 JUN 2022 AT 21:40

मुहब्बत चाहत शोहरत,से परे हटकर देखा जाए,
तो ये दुनिया काफ़ी हसीन है।

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1 JUN 2022 AT 21:56

मेरी वालिदह ने जो शजर लगाया,
आज भी मेरे घर के सहन में है,
लगाते वक्त ये नसीहत किया,
उम्र के एक पड़ाव में ये फ़ल दे या न दे, छाव ज़रूर देगा,
आज भी ये बात मेरे ज़हन में है।

वालिदह/मां
सहन/आँगन
ज़हन/दिमाग़
शजर/पेड़

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1 JUN 2022 AT 12:39

इतना आसान नहीं है बाप होना,
अपने बच्चो के लिए बुलंदियों सा आसमान होना।

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31 MAY 2022 AT 21:22

बिछड़ कर भी जिया जा सकता है,
ये सीख नदियों और झरनों से सीखो।

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31 MAY 2022 AT 20:27

चांद का वजूद चांदनी से नही,सितारों से है,
ज़िंदगी के मायने महबूबा और महबूब से नही,
"तबरेज़" ये तो अपने यारो से है।

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30 MAY 2022 AT 23:43

ज़िंदगी को अपने वालीदैन के नज़रिए से जिया जाए,
क्योंकि उनके जीने की वजह सिर्फ़ हम होते हैं।
हमे भी सिर्फ़ फ़िर उन्ही के लिए जिया जाए।

वालिदैन/माँ बाप

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