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*🌲🌺🌲🌺🌲नज़्म🌲 🌺🌲🌺*
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बनाया है मुसव्विर ने हसीं शाहकार औरत को,
अलग पहचान देता है कहानी-कार औरत को.
वो माँ, बहन, बीवी या कि बेटी हो सुनो लोगो,
हर इक किरदार में रक्खा गया ग़म-ख़्वार औरत को.
यही सच-मुच बना देगी तेरे घर को हसीं जन्नत,
ज़रा तुम प्यार से करना कभी सरसार औरत को.
फिर इक दिन उनकी क़िस्मत में लिखी जाती है रुस्वाई,
ज़माने में समझते हैं जो कारोबार औरत को.
उसी का रूप धरे फिर रही हैं कुछ चुड़ैलें भी,
मैं औरत ही नहीं कहता किसी मक्कार औरत को.
सलाम उन औरतों पर जो कि माएँ हैं शहीदों की,
सलामी पेश करता हूँ मैं सौ सौ बार औरत को.
मुझे उस वक़्त 'अरशद' क्यों मेरी माँ याद आती है,
किसी कुटिया में देखूँ जब किसी लाचार औरत को.
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Happy women day
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