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*🌲🌺🌲🌺🌲नज़्म🌲 🌺🌲🌺*
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बनाया है मुसव्विर ने हसीं शाहकार औरत को,
अलग पहचान देता है कहानी-कार औरत को.
वो माँ, बहन, बीवी या कि बेटी हो सुनो लोगो,
हर इक किरदार में रक्खा गया ग़म-ख़्वार औरत को.
यही सच-मुच बना देगी तेरे घर को हसीं जन्नत,
ज़रा तुम प्यार से करना कभी सरसार औरत को.
फिर इक दिन उनकी क़िस्मत में लिखी जाती है रुस्वाई,
ज़माने में समझते हैं जो कारोबार औरत को.
उसी का रूप धरे फिर रही हैं कुछ चुड़ैलें भी,
मैं औरत ही नहीं कहता किसी मक्कार औरत को.
सलाम उन औरतों पर जो कि माएँ हैं शहीदों की,
सलामी पेश करता हूँ मैं सौ सौ बार औरत को.
मुझे उस वक़्त 'अरशद' क्यों मेरी माँ याद आती है,
किसी कुटिया में देखूँ जब किसी लाचार औरत को.
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Happy women day-
Apni khamiya'n sunna pasand h... read more
हसरत
गुज़र तेरी गलीयों से मेरा न हो अबकी बार ़
है दिल मगर मजबूर तो आना ही पड़ेगा ़़़
महफिल हो और हम हों चर्चा न हो उनका ़
फिर दिल कि हसरतों को जलाना ही पड़ेगा ़़़
एहसास ए कमतरी यही गुज़िश्ता बरस में ़
हमपे जो है गुज़री वो बताना ही पड़ेगा ़़़
कहते हैं कि लोगों में कभी ग़म न अयाँ हो ़
है ज़ख़्म जिगर ख़म तो दिखाना ही पड़ेगा ़़़
वो आये मेरी क़ब्र तलक ताज़ीयात को ़
हसरत के लिए Mirza मर जाना ही पड़ेगा ़़़-
कहा है.
Mirza क़लम रक़म करो ये सोच के करो
तुम नाम में हमनाम से पहचाने जाओगे.-
ग़र हो इजाज़त तो यहीं शजर ला दें
आप हुक्म तो करें सारा शहर ला दें !!
ये सख्त लफ़्ज़ उर्दू और इनके मायने
समझ जो आ जाये तो कहर ला दे !!
इश्क मोहब्बत हमे लिखने दो साहेब
लिखने लगे तो दुनिया के बशर ला दें !!
आपकी मोहब्बत में लिख रहे ये सब
मुमकिन हो आपको मेरे पेशतर ला दे !!
आंखों का क्या है सच ये हैं बोलती
कहिये आपकी ही नज़रों की नज़र ला दें !!
Mirza पढ़ते रहे हैं ग़ज़ल हो या नज़्में
हो तहत या तरन्नुम ये सबमे बहर ला दें। !!-
एक लफ़्ज़ लिखा लिखकर मिटा दिया
खुद के साथ क्या ऐसा कभी किया,
शबें आरज़ू-ए-दीद में हैं गुज़रीं
रातों ने तो यहि सिलसिला किया,
वो जो बे-वक़्त सी चली आती हैं
यादों का वक़्त भी मुकर्रर किया,
बे-वजह बे-सबब सी है ये क्यूं
बे-ख्याली तूने भी रहम न किया,
मेरे यार तेरी तमन्ना नही अब
तूने वादा किया पर वफा न किया,
चन्द अल्फ़ाज़ हमने सुनाये उन्हें
कहते Mirza तुमने ग़ज़ब न किया।-
ख़्वाब लिये अनकहे एक चाह की बादल तले ़
चल दिये तकिया लिये हम रात की चादर तले ़़ं
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शब ए विसाल है आया है तेरे दीद का मुरीद
जलते चिराग़ गवाही देते तू कोहसार बनी थी-
नज़ाकत बलाग़त अदावत खिलाफ़त
मोहब्बत में मिलते रहेंगे यहि सब
और
इनायत करामत इबादत इताअत
शराफत में ये सब ही शामिल रहेंगे
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