कविता :- (सुख-दुःख)
दु:ख सहा नहीं जाता,
सुख खरीदा नहीं जाता,
इस मतलबी संसार में,
अब जिया नहीं जाता,
हैं सभी अपने-अपने स्वार्थ में लगे हुए,
नि:स्वार्थ भाव से कोई किसी से मिलने नहीं आता,
दु:ख से इंसान है दूर भाग जाता,
सुख मिलते ही पास है आ जाता,
अगर सुख मिलता दुकानों पर तो कौन खरीद नहीं लाता?
यदि दु:ख बिकता बाजार में तो कौन बीच नहीं आता?
सुख-दु:ख जीवन का है एक सिलसिला,
एक आता तो दूसरा है चला जाता,
है इंसान की फितरत कि वह दु:ख सह नहीं सकता,
और पर पुरुष को सुख वह दे नहीं सकता,
काश!सुख दु:ख का सफर एक ही अश्व(घोड़े) पर सवार हो जाता,
लेकिन फिर इंसान इसमें फर्क कहां समझ पाता,
दु:ख को देखकर सभी के मन में ज्वार भाटा सा है उठ जाता,
सुख को सन्निकट देख मन प्रफुल्लित हो जाता,
दु:ख सहा नहीं जाता,
सुख खरीदा नहीं जाता,
इस मतलबी संसार में,
अब जिया नहीं जाता.....
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19 DEC 2018 AT 21:12