Syed Mohsin Raza Naqvi   (Raza || رضا)
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Joined 24 March 2019


Joined 24 March 2019
26 JAN 2022 AT 0:41

Tabeer..!
(Full Piece In Caption)— % &

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30 DEC 2021 AT 14:56

Khushi Ke Raaz Chupe Hain...
Meri Udaasi Main..!

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18 APR 2021 AT 12:49

Tu khud Bhi To Ishq Ki Majbooriyan Samajhta Hai...
Nazar Jo Unse Hate To Kisi Taraf Dekhoon..!

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28 OCT 2020 AT 15:57

Ek Shaqs Se Mera Milna,
Mumkin Hi Na Hua...
Main Piyasi Dharti Sa Muqaddar,
Aur Woh Barsat Ki Manind..!

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15 OCT 2020 AT 12:50

सुकून और नींद का नहीं अब मौत इंतज़ार होता है,
ना बात होने से क्या रिश्ता ख़तम..!अब यह मेरा हरदम ख़ुद से सवाल होता है।

है ज़रूरी इश्क़ ज़िन्दगी के लिए,यह सच कहा तुमने,
मुकम्मल हो जाए इश्क़,यह भी तो आसान कहां होता है।

जिसे तुम चाहो वोह तुम्हें मिल जाए,यह कैसे मुमकिन है,
ताबीर कुछ और होती है, ख़्वाब कुछ और होता है।

वक़्त के साथ हर ज़ख्म भर जाता है,यह कहा किसने,
मेरा यह ज़ख्म तो वक़्त के साथ और भी नासूर होता है।

हमें है इश्क़ उनसे कितना,यह हमें से न पूछा करो,
इश्क़ की मिक़दार नहीं होती है,इश्क़ होता है या नहीं होता है।

बड़ा नामुमकिन सा होता है,खयाल की मुकम्मल अक्कसी कर देना,
वजूद दरअसल 'रज़ा' खयाल का ज़वाल होता है।

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5 SEP 2020 AT 18:05

मज़ाक ख़ुद का बनाना कोई मज़ाक नहीं,
फिज़ा में ख़्वाब सजाना कोई मज़ाक नहीं।

दबी-दबी सी अंधेरी फिज़ा में जुर्रत से,
चराग़ दिल का जलाना कोई मज़ाक नहीं।

जो तेरा साथ बसाया था दिल के मस्कन में
उसे यूं ख़ुद से हटाना कोई मज़ाक नहीं।

हजारों हसरतें हैं जो पूरी नहीं कर पाएं,
दिल से उनको मिटाना कोई मज़ाक नहीं।

तेरे तसव्वुरात से गुफ्तगू करके,
मेरा यूं अश्क़ बहाना कोई मज़ाक नहीं।

यह कैसे सोचते हो कि हम भुला दें उनको
किसी को दिल से भुलाना कोई मज़ाक नहीं।

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19 AUG 2020 AT 21:07

اگر زمین تھے ہم آسمان وہ بھی نہ تھا
حریف اس کی بھی تھے بےامان وہ بھی نہ تھا


ہمیں پہ سنگ ملامت ہمیں پہ طنز کے تیر
خطا ہماری بھی تھی ،بےزبان وہ بھی نہ تھا


سفر تمام ہوا خاموشی نہیں ٹوٹی
خلیق ہم بھی نہ تھے ،خوش بیان وہ بھی نہ تھا

پلٹ کے آنے کی امید دونوں جانب تھی
یقین ہم کو بھی تھا،بدگمان وہ بھی نہ تھا

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17 JUL 2020 AT 16:01

ख़्वाब..!

जो न पास,हो कर भी पास था
क्या वो ख़ास था
तलब किया जिस का साथ था,जो मेरा इंतख़ाब था
क्या वो ख़ास था

जो सर्दियों में धूप था
जो गर्मियों में छांव था
जो साथ सुबह शाम था
क्या वो ख़ास था

था जो मेरा इश्क़-ए-बेमिसाल
थी जिस पर मेरी जाँ-निसार
जिसे चाहता था मैं बेशुमार
क्या वो ख़ास था

था जो मेरी फिक्र में हर वक़त
जिसे मानता था में हम-नफस
था जो लफ्ज़ मेरा,मेरा जज़्बात था
क्या वो ख़ास था

ना वो पास था, ना वो खास था
वो एक अनकहा अहसास था
जो हो सके कभी ना सच
वो एक बेतुका सा ख़्वाब था
हाँ वो एक ख़्वाब था..!
- Raza

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2 JUL 2020 AT 20:47

Yeh Soch Kar,
Qalb Ko Apne Sakth Nahi Kiya...

Jo Maza Pighalne Me Hai,
Woh Bikharne Me Kahan..!

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1 JUL 2020 AT 11:05

Hume Khuda Se Mohabbat,
Nahi Sikhai Gayi...
Hawas Bahisht Ki,
Dozakh Ka Khof Ubhara Gaya..!


ہمے خدا سی محبت،
نہیں سکھائی گیئ...
ہوس بہشت کی،
دوزخ کا خوف اببھار گیا ..!

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