तेरी खुशियों के लिए हाँ में हाँ मिलाना भी तो सीख लिया मैंने
अब तू क्या चाहती है बिन जुबान कटे ही गूंगा हो जाऊँ-
Social Activist
Socialist Ideology
For my blogs open⤵️
मेरा आशिक़ बड़ा माहिर क़ातिल था
जिस्म जिन्दा रखा और रूह निकाल ली-
अब तो अपने हांथो से भी चीड़ होने लगी है मुझे
खुशियों की चंद लक़ीरें भी इन्हे नसीब न थी !!-
मुहब्बत का उसूल रहा है इश्क़ की बयानबाज़ी
तेरा पुर-तकल्लुफ़ी होना मुझे अच्छा नहीं लगता-
रोज़ सहतीं हैं जो कोठों पे हवस के नश्तर
हम "दरिन्दे" न होते, तो वो माँए होती।-
बे वजह बे सबब बहसों में तब्दील होने लगी बातों का सबब क्या है
रिश्ते,किरदार,जज़्बात सब बे तर्क़ हैं कामियाबी वाहिद इसका जवाब है-
मतलब परस्त दुनिया है यहाँ क़दर पैसों की है
गर वो न हुए तो तुम्हारे फिर तुम्हारे न होंगे
अब किस वहम में हो तुम आंखे तो खोलो
कल की वो भीड़ वो जलसे आज तुम्हारे न होंगे
फ़क़द रिवाजों की मुहब्बत भी मिलेगी तुमको
दिखावे को वो होंगे तुम्हारे लेकिन तुम्हारे न होंगे
-
गर जख्म खुरदने की मंशा से आये हो तो पूंछों हाल मेरा
वरना चेहरे की मुस्कराहट देख कर सब खैरियत समझ लो-
ताक़त का ग़ुरूर क्यों,कमज़ोरी का ख़याल कर
मिट्टी का खिलौना है तू ख़बर नहीं कब टूट जाए-
पूरे दिल में फैले पड़े दर्दों को समेंट कर इक्खट्टा किया और कोने में रख दिया
कई रोज़ से नए दर्दों की सिकायत थी की जगह कम पड़ रही है॥-