जो लफ़्ज़ों से पहले धड़कनो को सुन ले
तुम कोई आम नहीं,
खुदा का भेजा फरिश्ता हों मेरे लिए.....-
सज-संवर कर हर रात इंतज़ार करती हूं
विरह की अग्नि में हर रोज सुलगती हूं
अब और तन्हाई सहन नहीं होती
उसके दीदार को बहुत तरसती हूं
हर रोज बात चांद से करती हूं
सनम! मेरा कब आएगा
उस से ये हर रोज मैं पूछती हूं
दस्तक उसके धड़कनों पे भी होती होगी
जब जब याद मैं उसको करती हूं
मालूम है वो एक रोज आएगा
इसलिए इंतज़ार हर रोज मैं करती हूं!!!!!
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क्यों?? हो इतने दूर तुम
आ जाओ ना अब पास हमारे
इंतज़ार में तुम्हारे
हमने ना जाने कितने रात है गुजारे
अब सब्र का इम्तेहान ना लो
आ जाओ ना अब पास हमारे!!!!
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नहीं जानते... वो दिल का हाल हमारा,
बस कहते है हमें काफ़ी समझदार हो!!!
अब कौन बताए उन्हें जज़्बात हमारे,
हमने कितने ख़्वाब देखे है,
हर रात एक उम्मीद लिए हम पलके भिगोते है!!!!
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क्यों इतना मुश्किल सा है
उलझन खुद के सवालों से है
ज़िन्दगी रेत सी फिसल रही है
सवालों की पोटली भरती ही जा रही है
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हमारी हर दुआ में यू ही समिल रहो
मुकम्मल हो तुम्हारी हर ख्वाहिशें
खुदा कि रहमत बस तुमपे बनी रहे!!!!!-
वो क्यों नहीं समझते
जब जब तकलीफें दस्तक देती है,
रूह हमारी सिर्फ उन्हें ही ढूंढ़ती है!!!!!
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हरकतें सबकुछ बयां कर देती है
चाहे तुम जितना भी कहलो!
हम तुम्हारे है..
तुम्हारी नज़रे सबकुछ बतला देती है
🙂🙂🙂🙂-