kuch -ankahii   (©agrwalswati)
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Joined 12 February 2017


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24 APR AT 21:56

दुनियादारी के चलते लगे,
हर घाव को भर देती हो...
तुम मेरी 'आत्मा' का मरहम हो,
सुहानी सी लड़की !

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22 APR AT 21:20

कितना कुछ वो सहती है,
फिर भी मौन है सदियों से,

'धरती' का दुःख किसने जाना!

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7 JAN AT 21:09

और अंत में
बस इतना ही चाहा मैंने कि
पंछी बेहिचक कांधे पर बैठकर चहचहाएं,
पग रखूं धरा पे तो चींटी राह में न आ जाए,
वो बरगद की गिलहरी हाथों से दाना लेती जाए,
गईया और उसके बछड़े देख के हर्ष से रंभाएं,
तितली छुवन से विचलित हुए बिना हाथों पर बैठ जाए |

बस इतना सा मुझ में खुद को बचा देना दाता...
कि तुझसे नज़र मिले तो लजा के झुक ना जाए !

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15 AUG 2023 AT 7:04

आज़ादी सबको चाहिए...
आज़ादी देना कोई नहीं चाहता!

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9 JUL 2023 AT 20:59

किसी भी व्यक्ति का पौरुष,
उससे भी बढ़कर मनुष्यता,
इस बात से जानी जा सकती है कि
वह स्त्री की 'ना' को किस तरह से लेता है।
....

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2 JUL 2023 AT 20:39

16/4/2023

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17 JUN 2023 AT 22:13

.....

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24 APR 2023 AT 22:24

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21 MAR 2023 AT 20:09

संसार की निर्ममता अगर,
जीवनरस कम करने लगे कभी,
तो चले जाना बेझिझक किसी कविता की शरण में...
विश्वास रखो!वहां कभी निराशा हाथ नहीं लगेगी।

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1 MAR 2023 AT 20:25

सुनो पारिजात,

जब हंसते हो तुम...
तब मेरे आंगन में
उतरता है वसंत!

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