खुद से ही बातें कर अक्सर
बेवजह मुस्कुरा लेती हूँ,
परेशानियाँ बता उसे सुलझा लेती हूँ,
अपनी पसंदीदा गीत पर
यूँ ही थिरक लेती हूँ,
नहीं तलाशती मैं किसी को
चाय के साथ तारों से बतिया लेती हूँ,
अपनी शिकायतें डायरी में
बयाँ कर लेती हूँ,
आईने में देख अपनी तारीफ किया करती हूँ,
बस ऐसे ही मैं खुद के साथ कुछ
वक़्त गुजार लेती हूँ,
खुद के लिए भी प्यार जता लेती हूँ...-
बारिश की बूंदों सी खनकती मुस्कान बिखेरती हूँ मैं,
मैं 'मैं' हूँ, हाँ अपने लिए बहुत खास हूँ मैं...-
प्रेम,
कपास सा होता हैं
हल्का कोरा हवा जैसा,
न रीझता हैं सूरत से
न रंगत पर ठहरता हैं,
वो मन को स्पर्श कर
हृदय में बस जाता हैं,
हाँ, देखा हैं मैंने
ऐसे कितने प्रेमियों को
जिन्होंने ने रखा हैं नींव
शाश्वत प्रेम की,
रंग और सूरत के विपरीत...-
आहिस्ता आहिस्ता ही सही
मग़र, अब
सुकूँ ने घर कर लिया हैं मुझमें...
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पुष्प जो रह जाते हैं वंचित
ईश्वर चरणों से,
आहत हो इत्र हो जाते हैं,
और सुगंधित करते हैं
ईश्वर की सबसे प्रतिष्ठित पूजा...-
दो जिल्दों के बीच बंद
कोरे दीवारों पर,
मौन हो गयीं जो
अनगिनत भावनाएँ हैं,
कुछ कहना चाहती हैं,
हाँ, अब मेरे हिस्सें की बातें
मेरी डायरी करना चाहती हैं...-
और अन्ततः
प्रेम की प्रतीक्षा में
उगने लगेंगे रेत में भी
कमल,
और तब होगी रेगिस्तान में
प्रेम की बारिश ,
उन फूलों के खातिर...-
जिंदगी तलाशती हैं कुछ शांत से रास्तें,
शहर के शोर में थमने के लिए...-
लहरें अनिश्चितताओं के घने कोहरे में खो गयीं,
और परिस्थितियाँ,
फिसलती रेत पर ठहरना सीख रहीं...-