बिन सिसकियों के ये दिल बेइंतेहा रोता है
यूं हैरान न होइए कभी कभी यूं भी होता है..
बेमौसम की बारिश में कोई शख्स खुद को भिगोता है
यूं परेशान न होइए कभी कभी यूं भी होता है...
चल पड़ता है ये मन अक्सर , न जाने किसके ख्वाबो में खोता है
यूं हैरान न होइए कभी कभी यूं भी होता है...
पलकों तले एहसास छुपा कर हम जैसों को रखना होता है
यूं परेशान न होइए कभी कभी यूं भी होता है...
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तो रोशन कर दूं उस घर का वो कोना...
जहां मायूसी से घिरा है दिल
और उम्मीदों में बीत रही है ये रैना...-
कभी इक शोर में सुकून है कभी ख़ामोशी में बेचैन हूं....
क्यों ख़ुद ही से मैं पूछ रही हूं हर दफा...मैं कौन हूं....-
इन आँखों को खूबसूरत चीजों को देखने की आदत थी....
ताज्जुब की बात यह है कि...
आंखों ने इस कदर फ़ितरत बदली....
कि तेरे सिवा कोई और भाया ही नहीं....
प्रेम की निःस्वार्थ परिभाषा, ममता की मूरत
कहते है तुझको....
ताज्जुब की बात यह है कि....
दिल में इस कदर तेरी मूरत बसी.....
कि तेरे सिवा कोई और खूबसूरत छाया नहीं.....
तू दोस्त है, सखी है, सहेली है....
एक सुन्दर सी अनसुलझी हुई पहेली है....
तू धूप में छाँव की तरह खुदा की रहमत है....
खुशनसीब है वो जिसके पास "माँ " है...
जिसके पास तू नहीं, उसने ज़िंदगी में कुछ पाया नहीं...
दुनिया के हीरे मोती तुझपे कुर्बान .....
मेरे जीवन की जीवन ज्योति तुझपे कुर्बान ....
ताज्जुब की बात नहीं ज़रा भी....
जिसे तेरी कदर नहीं...
रब का बेहतरीन तोहफ़ा उसने पाया ही नहीं ....-
हिज़्र की रैना नम करके अश़्कों को बहाओगे
दर्द जो सीने में है छिपा ख़ुद से कैसे छुपाओगे...
रो पड़ेंगे मेघ भी भीग जाएगा धरा का आंचल
बेवक्त की इस बारिश में सुकून का आसरा कैसे पाओगे...
हंसता है हर कोई यहां हमदर्द बनने के बाद
बस भी करो अब किस किस को गम अपना तुम सुनाओगे...
गले लगाकर लोग यहां अक्सर इल्ज़ाम लगा जाते हैं
लाख मुद्दतों के बाद भी देखना तुम तन्हा ही रह जाओगे...
हिज़्र की रैना नम करके अश़्कों को बहाओगे....
दर्द जो सीने में है छिपा ख़ुद से कैसे छुपाओगे...
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अश्कों का दरिया इन आंखों में भर जाऊं...
सांसों से धड़कन तक का सफ़र ख़त्म कर जाऊं...
रूठे रूठे लगते हैं अब मुझसे मेरे सपने
इंसानों के मुखौटों से डर जाऊं...
और बताओ क्या कर जाऊं...
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पल दो पल की ज़िंदगी ये तो बस कहने की बात है...
इक उम्र कटा करती है यहां उस मौत के इंतज़ार में...
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किसी की ज़िंदगी को रोशन करके देखा है क्या...
किसी के लबों पर मुस्कान भरके देखा है क्या...
जी उठेगी बेवजह ये रूह तेरी
कभी किसी पर मर के देखा है क्या...
क्यूं कैद किया है ख्वाबों को आंखों के लिफाफे में
कभी ख़ुद की अधूरी दास्तान पढ़ के देखा है क्या...
कोई धुन सुनाते हैं ये रास्ते तन्हा चलने पर
कभी कोई गीत गा कर बिन रहबर के देखा है क्या...
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आप सभी को दिवाली की ढेरों शुभकामनाएं ,
हम आशा करते हैं कि आपका साल
दीपकों की लड़ी की तरह
रोशनी लिए
एवं
खुशियों भरा
बीते...
...HAPPY DIWALI...
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यादों के सर्द मौसम में सहर नम कर जाते हैं....
ये अधूरे ख़्वाब भी ओस की बूंदों की तरह निकले...-