In the end ,
the people alike gets together ,
if it is not so, then it is not the end .-
अदब सबब की होड़ में ,
विरह की घड़ी बेजोड़ में,
हो तुम छाए घटा से ,
गिरी जो विरक्ति के मोड़ में,
आए दिन कोई सुधार है,
न विरह का अब आसार है ,
सीख गुज़रे कल का सार है,
अनुभव जिसका अब आधार है ।-
ਜੱਦ ਕਾਗਜ਼ ਤੇ ਕਲਮ ਦਾ ਆਗਾਜ਼ ਹੋਇਆ ,
ਜਿੱਥੇ ਪਏ ਸੀ ਛਿੱਟੇ ਉਦਾਸੀ ਦੇ ,
ਭਰਿਆ ਹੋਇਆ ਮਨ ਮੇਰਾ ਉਥੇ ਫਿਰ ਬਾਗ਼ ਹੋਇਆ ।
ਹੋਇਆ ਇੱਕ ਵਾਰ ਫੇਰ ਨੂਰ ਉਸ ਚਿਹਰੇ ਤੇ ,
ਜੌ ਸੱਖਤ ਸੀ ਜਜ਼ਬਾਤ ਹੋਏ ,
ਮੁੱਕਿਆ ਸਿਲਸਿਲਾ ਹਨੇਰੇ ਦਾ ਉਸ ਪਹਿਰੇ ਤੇ ।
ਗੁਲਾਂ ਨੂੰ ਛੇੜਨ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਮੈ ਪੜ੍ਹ ਆਈ ,
ਸਾਂਭ ਸੁਰਖ ਸਵੇਰਾ ਸੋਨੇ ਜਿਹਾ ,
ਆਗੋਸ਼ ਵਿਚ ਖਾਮੀਆਂ ਨਾਲ਼ ਮੈ ਲੜ ਆਈ,।
-
जब नेकी बदले हो चश्म नम ,
कहां उम्मीद फ़िर कहां वफ़ा ,
खस्ता जब हो चले तो ,
क्या क़िस्मत खफा, और गम दफा।-
दास्तां गर हो बयां ,ठहरा हुआ जो किस्सा थलग है,
रास्ते कहां नामुमकिन से,हमसफ़र तुम हो तो बात अलग है।
-
पैंतरे नाकाम हो जहां ,
फ़िज़ूल उस गली में आया नहीं करते ,
तवज्जो के लिए भी जब तरस जाओ ,
खौफ उस गैर का खाया नहीं करते ,
जिसे आदत ही मंज़िल बदलने की हो ,
उस पर वक़्त अपना ज़ाया नहीं करते ।
-
जो थमे हैं साए तुम्हारे,
महक रही ये गालियां गुज़ारिश में,
देखा गर' इहतियात से तुम्हे ,
ना वो सूकून रहा अब बारिश में ,
-
कि गमगीन ये नज़ारों की बदौलत ,
बंदिशें नजायज खौफ छुआ करती हैं,
मिटता नहीं अंधेरा जिन शहरों का ,
नेकी वहां आफ़ताब हुआ करती हैं ।-
Under incredible fog coat,
Admire warmth of bonfire heat ,
Leave that Persian rug,
Let's walk together on moss sheet.
-
आहिस्ता से अफसानों की ,लफ्ज़ संजोए वो बात करते हैं ,
बेआरामी के इस दौर में ,आज फिर पहली मुलाक़ात करते हैं
-