जब-जब इश्क़ का ज़िक्र हुआ
किताबों में, कविताओं में
मैंने केवल तुमको आँका
उन सब की व्याख्याओं में।
पर्वत, नदिया, सागर, मरुथल
सूर्य, चंद्रमा, चंदन-कानन
सारी संज्ञा तुमसे ही हैं।
अनंत संज्ञाएँ जो लिखित नहीं है
शब्दों के भंडारों में
मैंने चाहा तुमको ढूंढूँ उन अज्ञात संज्ञाओं में।-
तुम्हें ख़बर तो होगी मेरे हालात-ए-मौजूदा की,
तेरी मौजूदगी में तो बादशाहत थी हमारी।-
न लौटो, बस चले जाओ
ये नर्मी का आडंबर क्यों
चित्त भीतर बाहर अंतर क्यों
मान्य नहीं तुम छले जाओ
उचित है तुम चले जाओ।
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इक तो बेसबब गुज़ार दी हमने ज़िंदगी की दो प्रहर,
और तुम मिले भी तो हमें ढलती शाम में मिले...-
मैं इस दिल की मायूसी में
टटोल रही थी रात
सुकून की तलाश में
तड़प रही थी आज।
मैंने अनंत पूरणमासी
घनघोर तिमिर में गुज़ारी है,
महफ़िल में होकर भी
एकांत मुझपर भारी है।
मैं हर रात नैनों से
बहाये कितने नीर रही
तेरा बिछोह मेरे सीने में
चुभता बन कर तीर कहीं
तुमने किसी और को अब
सौंप दिया मन का प्याला,
अब किसी ग़ैर की बाहों में
सजते होगे बन कर माला।
मैं अपनी माला की डोरी
उन ग़ैरों को चढ़ा बैठी,
मैं इस दिल की मायूसी में
अपना स्वर्ग जला बैठी।-
मैं कहाँ अपनी ज़िंदगी में सुकूँ पा रही हूँ,
तू मुझे तस्वीरों से खुश जान बैठा है ।-
मैं जितनी उत्सुकता से मिलती हूँ लोगों से
उतना ही एकांत ने मुझे भीतर से जकड़ रखा है ।-
अगर तू इजाज़त दे
तेरी ओर एक कदम बढ़ाऊँ,
तुझको छू कर देखूँ
तुझे सीने से लगाऊँ।
अगर इजाज़त दे दे तू
तुझे काजल बना लूँ आँखों का,
तू अगर दे दे इजाज़त
श्रृंगार करूँ मैं अंग-अंग का,
हर श्रृंगार में तुम्हारा प्रेम
निशदिन मैं जीवंत करूँ,
हारश्रृंगार का पुष्प चढ़ा कर
प्रेम तपस्या सिद्ध अर्थ करूँ।
तुम भर कर आलिंगन में
मेरा तप स्वीकार करो,
अगर इजाज़त दे तेरा मन
तुम मुझको अंगीकार करो।-
शायद बीत जाए उमर मोहब्बत की तलाश में,
शायद किसी की मोहब्बत के क़ाबिल न रहें हम।-
मैंने काव्य-कविताएँ नहीं पढ़ीं लेकिन,
तुमसे मिलना मेरे जीवन की एक हसीन कविता है।-