रचने वाले ने क्या खूब रचा है ,
ढलता सूरज बहता समुंदर…..
स्वर्ग के तारो से भी सूंदर रचा है……!!!
रचने वाले ने क्या खूब रचा है ,
खारे समुन्दर मे भी मोती रखा है ,
लहरों क शोर मे साहिल को शांत रखा है ,
और
अनंत स्वविलिन सागर ने दरिया को अपने पास रखा है !!
मानना पड़ेगा रचने वाले ने बहोत सोच के रचा है !!
रेत का पाव तले जिंदगी की तरह फिसलना ,
डूबते सूरज को सच बता अलविदा कह देना ,
मार्च मे बारिश और बारिश मे दिसंबर का याद आना ,
किनारो पर पेड़ों का खुद पल जाना ,
तू बता…..
क्या कहीं इस से भी सुंदर रचा है ????
या जो रचा है बस….. अब यहीं रचा है …..
यही रचा है !!!!!!!
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बचपन से थी मूझे राधा बनने की लगन ,
मैचिंग का झुमका, मैचिंग कंगन मे उलझा रहता था मेरा मन......
धीरे धीरे उम्र चढ़ी , मैं इठलाके सब मे कान्हा ढूढ़ने लगी......
कोई मिला छलिया....कोई मिला छलावा
कोई मिला रड़छोड़ तो कोई बैरगिया......
सब मोह माया त्याग कर,
जीवन क सत्य को अपनाया......
और मेरे जीवन मे आए राम को प्रेम से गले लगाया........
अब उम्र और चढ़ी और एक नया पड़ाव आया
आई बिटिया मेरी और मैंने यशोदा का पद पाया........
और इस बार मैंने अपनी इस नटखट मे अपने कान्हा को पाया......
कान्हा भाव है..... कान्हा मोह है......
कान्हा त्याग हैं....... कान्हा वेराग्य है......
ये ढाई अक्षर का शब्द ही खुद मे सारा संसार है !!!!!!!-
भरी महफ़िल मे भी एकांत बैठी हूँ
सब पाकर भी खाली सी रहती हूँ
पूछा नहीं है हाल किसी ने भी कब से........
तो आज अपना दर्द खुद ही लिखने बैठी हूँ !!!
मेरी उलझनों का कोई हल बता दो......
खोयी हुई मेरी कोई पहचान लोटा दो.......
दो पल .....दो लफ्ज.......दो शब्द
मेरी इज़्ज़त के भी कोई मुझे तो सुना दो !!
बस भोत हुआ .....
थक गयी हु अब मै ,कोई मुझे भी सुला दो !!!
चलो कर लो चुगली मेरी , करो कमरों के दरवाजे बंद ,
हो जाओ अब दूर मुझसे ,चलो कर ले ये रिश्ता खत्म ,
तुम जैसे हो तुम सब वैसे रह जाओगे ,
चलूंगी आगे मै और सब पीछे पछताओगे ,
अंतिम मेरी इन पंक्तियों ने मुझे खुद मुझसे ही जोड़ दिया ,
और अंत मे मेरा लिखना मेरे ही काम आ गया !!!!
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इसे सौभाग्य कहूँ या भाग्य से तुम्हारा मिलना मानू ।
लेकिन इस सृष्टि की ऋणी हूँ कि मुझे आप को पतिरूप में दिया ।
मेरे जीवन की ढाल और जरूरत पड़े तो तलवार आप हैं ।
मेरे अदम्य साहस और असीम शक्ति का राज जिससे किसी को प्रकृतिवश मुझसे ईर्ष्या हो जाये....
आत्मज्ञान की प्रकाशक अंबा अगर मोक्ष और आप में से किसी एक को चुनने को कहे तो आपके लिए मैं बार बार इस संसार में आने को तैयार हूँ ।💖
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मैं औरत……
मेरे अनेक रूप…..
जहा मैं चंचला बेटी तो वहीं भोली माँ भी.……
जहाँ मैं कुटुम्ब की पालक
तो वही मैं महाभारत की कारण भी।।
मै औरत …….
मेरे अनेक रूप……
हूँ मै कभी अनछुई अम्बा और अहल्या…..
तो कभी बनी मेनका औऱ ऐश्वर्या भी,
कभी जुगो से बहती भगती गंगा ,
तो कभी ठहरी हुई नर्मदा भी।।।
मैं औरत…..
मेरे अनेक रूप….
कभी हर जरूरत की पूरक मै,
और कभी हर जररूत की कारण भी
बनती हु कभी स्वादिष्ट रोसिया भी
तो कभी बेस्वाद जिदगी का कान भी।।।।।
हूँ मै एक औरत पर
मेरे रूप अनेक।।।।
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मै जीवीत जीवन का एकमात्र प्रमाण,
मानव जीवन का सर्वत्र परिणाम,
मैं विरोध,.........मैं विद्वन्वंश……..
मैं तुम्हारा कर्म !!!
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ये जो थोड़ी सी खुद मे बची हु मैं.......
ये भी उन्ही की चाहत थी मुझे मुझमे दुबारा देखने की !!!-
नम आँखों से गिला किया की........
"मैंने पूरी ज़िंदगी तुझ पर क़ुर्बान कर दी "
वो मुसकराकर बोले.......
चल मैने भी हफ्ते की एक शाम तेरे नाम पर दी.......!!!-
एक तारीख़ तय की थी उसने हर वर्ष मिलने की ,
काश..... हाँ कहा होता...... वजह तो होती जीने की !!!!
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मैं उसे लगती अपने बहोतो की तरह थी ,
पर वो चाहता मुझे.....बस मेरी वजह से था !!!-