Swati Singh   (✍️स्वाती सिंह"रूहानी")
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Joined 11 September 2017


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Joined 11 September 2017
29 MAR AT 3:27

नींद न आने का
मलाल कैसा होता है
कोई उनसे पूछे
जिनके न कोई
आस - पास हो
न किसे से कोई
बात हो
मन में हज़ारों
सवाल हो
जिसका कोई न
ज़वाब हो
आसमां के नीचे
तारो के साथ
गुजरी पूरी रात हो

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10 MAR AT 22:11

लगा अपने अक्स
को गले से खुद को
मैं समझा लेती हूं

तुझसे मिले दर्द
को भर बाहों में
मैं बहला लेती हूं

ग़म से ढह रहे हैं
ख्वाबों के महल
मैं बना लेती हूं

नयी तमन्नाओं से
ख्वाबों का आशियां
बारम्बार सजा लेती हूं

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9 MAR AT 0:03


*गृहणी*

किस्मत की बाजियों पर इख्तियार नहीं है
हम गृहणी हैं हमारे हिस्से में इतवार नहीं है

हमारे नित किए कामों की वाह वाह नहीं है
ख्याल रखते सबका, अपनी परवाह नहीं है

हमारे अपने कोई भी सपने साकार नहीं है
घंटों करते काम हमारी कोई पगार नहीं है

चूल्हे चौके में सिमटी जिंदगी आसान नहीं है
कर्तव्य के बोझ तले हमारी पहचान नहीं है

जीवन के सफर में हमारा आसमान नहीं है
हम गृहणी हैं हमारा कोई सम्मान नहीं है

अविराम गतिमान गृहिणी का आधार नहीं है
हम गृहणी हैं हमारे हिस्से में इतवार नहीं है

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3 MAR AT 20:54

*व्यथित मन की कल्पना मात्र*

जब सीने में दर्द तुम्हारे आया होगा
तब तुमने करुण पुकार लगाया होगा

आँखों के सामने अंधेरा छाया होगा
तुम्हारा मन भी जोर से घबराया होगा

उठा नज़रे तुमने मुझे तलाशा होगा
मुझे न पाकर खूब अश्क बहाया होगा

पुरजोर समर्थ से आवाज लगाया होगा
तुमने बहुत कुछ कहना चाहा होगा

तुम्हें लेने ऊपर से यमराज आया होगा
तुमने किसी बहाने से हाथ छुड़ाया होगा

आखिरी वक्त तुम्हें बेटा याद आया होगा
तब दिल तुम्हारा जोर से छटपटाया होगा

तुमने वक्त से कोई मोहलत न पाया होगा
तब धीरे - धीरे तुमने हाथ बढ़ाया होगा

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23 FEB AT 8:31

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6 FEB AT 23:47

भरी अंजुमन में अश्क छुपाना आता
काश, हमे खुलकर मुस्कुराना आता

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29 NOV 2023 AT 18:20

उसने तोहफ़े में मुझे घड़ी देकर मेरा
सारा वक्त अपने इश्क से बाँध लिया

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22 NOV 2023 AT 8:21

ऑनलाइन हाजिरी v/s शिक्षक की मांग

ऑनलाइन हाजिरी हर शिक्षक को स्वीकार है
हम इंसान हैं बस हमें रोबोट बनने से इंकार है

कैलेंडर में दर्शायी छुट्टी करती हमें बदनाम है
लिखी कुछ मिलती कुछ, जो नहीं स्वीकर है

कई जयंती व कई त्योहार पड़ा रविवार है
कैलेंडर में उनको दर्शाना लगता बेकार है

विशेष जयंती चलता कोई न कोई अभियान है
सब पूरा करते हम फिर दिन चाहे रविवार है

ग़र खुले स्कूल जो उस दिन कोई अवकाश है
क्यों बदले में नहीं मिलता प्रतिकर अवकाश है

कई विद्यालय खेतों में या होता नदिया पार है
इन रास्तो से गुजरना नहीं होता आसान है

मीटिंग हो विद्यालय टाइम ये हमारी दरकार है
ऑनलाइन हाजिरी हर शिक्षक को स्वीकार है

पारिवारिक, वैयक्तिक कई आवश्यक काम है
मिले हाफ डे लीव व अर्न लीव हमारी मांग है

निशुल्क चिकित्सा शिक्षक का भी अधिकार है
कोई सुविधा नहीं राज्य कर्मचारी के समान है

पदोन्नति की कबसे ही रुकी पड़ी रफ्तार है
जबकि विभागीय प्रमोशन 3 वर्षीय प्रावधान है

पुरानी पेंशन की हर कर्मचारी लगाए आस है
बिन पुरानी पेंशन बुढ़ापा होता खस्ता हाल है

सारा ही कार्य लिंक व एप्प से होता तत्काल है
फिर हमारी जायज माँगों से क्यों करते इंकार है

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22 MAY 2023 AT 11:04

वो लिखता रहा मुझे अपने डायरी में
मैं गुमनाम सी रही उसकी शायरी में

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22 MAY 2023 AT 11:02

चंद अल्फाज़ नहीं हैं मेरे जिसकी शायरी में
हर सुबह-ओ-शाम हैं मेरे उसी के डायरी में

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