swati rawat   (स्वाति रावत)
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Joined 28 March 2019


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18 APR AT 23:58

ज़ख़्म अब भरते नहीं, बस नींद आ जाती है।
इंतज़ार की हर रात भारी, काली और वीरान है॥

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18 APR AT 23:43

उसकी आँखों में आँसुओं की धार,
एक शिकायत है जो एक-टक ज़ख़्मी-सा वार करती है॥

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18 APR AT 22:59

उसकी बंद आँखों के सपनों में, खुली पलकों के साथ थी मैं
खुली पलकों से माँगी थी मैंने उसकी अनगिनत, अनछुई, आनंदित इच्छाएँ।

बंद आँखों के सपने अक्सर अधूरे, अविश्वासी और आघातीय होते हैं,
पर उनको किसी अपनों के द्वारा छू लिया जाये तो वे यक़ीनन आधार बनते हैं

आधार… रिश्तों में आदि, अनंत और असीमित, व्यापक् विशुद्ध प्रेम का!!

-स्वाति रावत:)

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1 APR AT 3:44

हाँ दिन मेरा हमेशा वीरान रहा है,
पर रात मेरी कभी अकेली नहीं रही॥

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27 MAR AT 20:27

हमारे एक कमरे की खुलती खिड़की,
हमारे आज को आकाश करती है।

क्या यह दुनिया जानती है?
…हमारी सोच और खोज, तारे- सितारे हैं॥

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27 MAR AT 18:53

मृत कोशिकाएं, इंतज़ार को अलविदा कह रही हैं..:)
- स्वाति रावत

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26 MAR AT 21:27

एक पेड़ का पहाड़ हो जाना…
मैं भूरी, भावुक-हीन और भयावह हो गयी हूँ_॥

-स्वाति रावत:

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4 MAR AT 23:45

प्रतीक्षाओं की भूमि में जब प्रार्थनाओं ने जन्म लिया,
एक उम्मीद रोयी, सौ संभावनाएँ मुस्कुरायी..:)

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4 MAR AT 20:51

आँखें नदी हो गई हैं और आँसू खून,
खून की बहती इस नदी में यह पल पत्थर बन कर डूब रहा है:

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4 MAR AT 19:19

ना दिन की चाह है, ना रात-भर उम्मीद
मुझे खिलना होगा सिर्फ़ मुरझाने के लिए:

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