वैसे तो बहुत
पहचान वाले हैं मेरे,
इस शहर में,
लेकिन
एक शख्स ऐसा हैं जिसे,
हम जानना चाहते हैं ...-
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चीजें जो इतनी Obvious लगती हैं,
क्या वो उतनी Obvious सच में है?
या हमने उन्हें जी जी कर
Obvious बना दिया है!-
समझाएँगें हम भी तुम्हें, नज़रिया अपना
सुनो, अबकि जो आना तो थोड़ा,
सुनने का सब्र ले कर आना ...-
हाँ, तुमसे रिश्ता हैं मेरा,
मगर एक रिश्ता तो मेरा खुद से भी हैं।
हाँ, तुम्हारा साथ देना हैं मुझे जीवन भर,
मगर कुछ वादें तो मैंनें खुद से भी किये हैं।
हाँ, तुम्हें चाहती हूँ बहुत मैं,
मगर कुछ चाहतें मेरी खुद से भी हैं।
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रविवार का दिन, सर्दी की धूप,
नम हवा, गरम चाय
अपनों का साथ, बचपन की याद
थोडी फुरसत, एक पसंद की पुस्तक
कभी ऐसे भी जीवन जी कर देखिए
अच्छा लगता हैं...-
हम सब के पतंग आकाश छूना चाहते हैं
और छू भी सकते हैं मगर
हमारा ध्यान अपनी सफलता से ज़्यादा
दूसरे के पेंच काटने में रहता है।
अंततः हम ना दूसरों को आगे बढ़ने देते हैं
ना ही स्वंय आगे बढ़ पाते हैं...-
चाहत थी तुम्हें एक नज़र देखने की
और तुम्हें देखना भी नहीं चाहते हम।
इसीलिए, आँखों की,
तुम्हें दूर से देख लेने भर के जिद्द को ,
मैंनें ठुकरा दिया।-
इन संघर्षो के किस्सों से मिलकर
मेरा किरदार सँवर रहा है
और मंजिल हमारी आज भी दूर ही खड़ी
हमारा रस्ता ताक रही हैं।-