का कोई अंत नहीं हैं, ज़रूरत हैं कम चाहतों पर काबू नहीं हैं। हर चीज़ का तो मोल भाव करने लगे हैं, रिश्तों को पैसों के तराजू पर तोलने लगे हैं। पूरा पाने की चाहत में इतना लीन हो रहे हैं, जो कुछ हैं हाथ में उसको भी खो रहे हैं ।। ख्वाहिशों के बोझ से कुछ यूं दब रहे हैं, अपनों को भूल खुशियाँ कहीं और ढूढ़ रहे हैं। ।
जिसमें लिखें कई ख्वाब हैं । हर ख्वाब की एक कहानी हैं जो लगती मेरी जिन्दगानी हैं ।। कुछ अधूरे से कुछ पूरे से कुछ देखें से कुछ अनदेखे से। हर पन्नों की एक कहानी हैं जो लगती मेरी जिन्दगानी हैं। ।