लेहर : एक बार फिर
वही लेहर एक बार फिर आई है,
इंसान को इंसान की अहमियत एक बार फिर सिखाई है,
फर्क उनको नही जो बैठे है मेहलो की शान में,
फर्क उनको नही जो बैठे थे सड़कों या शमशान में,
फर्क तो उसको है जो हमेशा से आम है,
उठ के, गिर के, करता हर काम है,
वह लेहर एक बार फिर आ खड़ी है दो राह में,
जीवन या मरण मिलेगा क्या इस संसार के बाज़ार में..
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