!!आतंकवाद का मज़हब!!
धर्म के नाम पे चलती रहती गोलियां,
बताओ क्या लगाई है इन जान की बोलियां...
कभी कोई कभी कोई इन मजहबी मसलों में;
टूट रही सबके बीच से इंसानियत की डोरियां.....
मनाने तो गए थे धरती के स्वर्ग में परिवार के साथ खुशियां;
एक पल में वो खेल गए कई खून से होलियां...
किसी का सुहाग किसी का बेटा चला गया;
बस मौत की चीख से गूंजती रही वादियां...
धर्म पूछा, नाम पूछा और चलाई गई गोलियां;
रहम की जैसे भीख मांगते रहे लोग फैलाकर अपनी जोलियां....
अगर आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता "अंदाज",
तो क्यों धर्म पूछकर हिन्दुओं पर बरसाई गई गोलियां...-
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Bloging about "The Constitution of India "
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हर बात के दो पहलू है "अंदाज़"
भरोसा रखो तो आशाए उम्मीद कि किरण है;
सोचो तो आशाए दुःख कि वजह...-
हररोज करती हुं बातें आसमान और सितारों से,
साझा करती हुं हर गम हर बात गुजरते बादल से,
लगता है ठहर कर सुन लिया उन बादलों ने;
तभी सायद रो रहे हैं बादल "अंदाज़" ईतनी ठंडमें...-
हिंदू के लिए गीता, मुसलमान के लिए कुरान;
वैसे ही भारतीयों के लिए देश का संविधान...-
कहीं हो रहे हैं दंगे, कहीं हो रहे हैं अत्याचार;
आए दिन हो रहे है सरेआम हत्याकांड;
कहीं प्रकृति कर रही है विनाश, पर्वत पर मानो बरसा है काल;
बिन सांप्रदायिक देश में धर्म के नाम पर भभक उठी है आग;
पता नहीं किस आक्रोश में जल रहा देश बार बार;
हालातों की क्या बात करूं "अंदाज़", लगता है देश को नज़र लग गई है इसबार....-
આપણો એક બીજા પર વિશ્વાસ;
આપણી મહેનત છે અથાગ;
હર ડગલે મળે છે એક બીજાનો સાથ;
તું પ્રગતિ કર હું નહીં બનું આડ;
એક બીજાના સ્વપ્નનું કરાય છે સન્માન;
આ જ છે "અંદાજ" આપણા સંબંધોની શાન...
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गुरु महिमा शब्दो में लिखा न जाए,
गुरु ऋण पैसे से तोला न जाए,
गुरू न हो तो मिले न ज्ञान ;
बिन ज्ञान सफलता की राह पर चला न जाए ...-
आज बैठ कर कुछ सोचने लगी;
शायद मैं थोडी सी जिम्मेवार हो गई हूं,
कभी आलस करती थी मैं;
आज थोडा संघर्ष करने लग गई हूं,
देर तक सोने का बहाना ढुंढती थी मैं;
अब सुबह 6 बजे ऑफिस पहुंचने लग गई हूं,
बारीश होने पर छुटी मिलेगी ये सोचती थी मैं;
अब कमर तक आते पानी से गुज़र कर भी ऑफिस जाने लग गई हूं,
बारीश में बिजली की आवाज से डरती थी मैं;
आज तुफान के बीच भी अपने काम में लगी हुई हूं,
हर पल परिवार के साथ रहती थी मैं;
अब ईतना दुर अकेले रहना सीख गई हूं,
थोड़ा सा कुछ हो जाए घर सर पर उठाती थी मैं;
अब हर हाल में खुद को संभाल ने लग गई हूं,
चुनौतीपूर्ण स्वप्न देखती थी मैं;
शायद तभी "अंदाज़" हर चुनौती का सामना करना भी सीखने लगी हूं।।-
गीता
जब पैर तेरे डगमगाए, तुम गीता खोल कर पढ लेना,
जब मन तुम्हारा घबराए, तुम गीता खोल कर पढ लेना,
जब लगे अंधकार जीवन मे, तुम गीता खोल कर पढ लेना,
जब डर लगे कुछ करनेमें,तुम गीता खोल कर पढ लेना,
जब मन भर जाए इस दुनिया से, तुम गीता खोल कर पढ लेना,
जब अकेलापन छा जाए, तुम गीता खोल कर पढ लेना,
गीता ही है सार जीवन का, गीता ही है आधार जीवन का,
गीता खोल कर पढ लेना "अंदाज़", मिलेगा हर जवाब जीवन का.....-
....वक्त....
वक्त सभीके सामने अनेक मोड रखता है.....
कोई वक्त के साथ बह जाता है;
कोई वक्त में संभल जाता है,
कोई मिली हुई आज़ादी की कदर करता है;
कोई आज़ादी का अर्थ कुछ और ही समझता है,
फर्क बस इतना ही है "अंदाज़";
वक्त के साथ बहने पर कुछ पल की खुशी के बाद अंधेरा छा जाता है;
वक्त पर संभलने से संघर्ष के बाद पुरा जीवन रोशन हो जाता है......-