क्यूँ देखूं राह उसकी
अकेले चलना कोई गुनाह नही है।
मोहोब्बत बची है अभी भी,
बस बेपनाह नही है।
सूनी इन आँखों मे अब करार नही है,
हुआ करती थी शिद्दत बहुत,
अब यूँ दिल बेकरार नही है।।
महफूज़ रखा था कभी उन्हें इस दिल में,
मगर अब वो इन आँखों का नूर नही है।।
वो भूल गए बेशक दिल लगाना,
तो हम भी इश्क़ में इतने चूर नही हैं।।
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