कि रो पङेंगी ये आँखें,
बस अब लौटकर न आना तुम,
अगर रह गया हो मेरा कुछ तुझ में,
वापस मुझ तक न पहुँचाना तुम।
कि काट लूँगी रातें शेष,
कुछ यादों के सहारे मैं,
बन कर किसी रात का अंधेरा,
मुझे अपने साथ न ले जाना तुम,
कि रो पङेंगी ये आँखें,
बस अब लौटकर न आना तुम।
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सभी हैं भीङ में जो तुम निकल सको तो चलो~निदा फाज़ली
पहर दो पहर मैं चलता हूँ
खुद के वजूद की तलाश में
दर दर मैं भटकता हूँ,
एक उम्मीद में, एक आस में
न हताश हूँ, न गम मुझे
न रुका कभी,न झुका कभी,
आस है,विश्वास है
मिलूँगा किसी मोङ पर।
पहर दो पहर मैं चलता हूँ,
खुद के वजूद की तलाश में,
दर दर मैं भटकता हूँ,
एक उम्मीद में, एक आस में।
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उम्मीदें और ख्वाहिशें दम तोङने लगती हैं ,
जब हार और जीत की लङाई के बीच हार की जीत होने लगती है..
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करती हैं इतनी बातें न जाने क्यों मेरी खामोशी मुझसे,
न जाने क्यों लोगों से मिलने की इजाज़त नहीं देती है।
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जितनी बार खुद में तलाशा है तुझ को,
उतनी दूर खुद से पाया है खुद को,
लिपट जाती हैं यादें तेरी मुझसे कुछ ऐसे,
की हँसते-हँसते कई दफ़ा रूलाया है मुझ को।
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बदले-बदले से तुम, कुछ बदले से हैं हम,
चेहरे पर है हँसी फ़िर भी आँखें हो रही नम।-
किसी बुझते दीये की रौशनी बन तुम उसके प्रकाश को चारों ओर फ़ैलाना,
मैं किसी रात का अंधेरा बन अपने साथ लेकर चलूँगा तुम्हें।-