Swarn Deep   (स्वर्ण दीप बोगल)
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Joined 5 August 2017


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3 JUL AT 8:13

फलीभूत नहीं होती मजबूरी।
पूर्ण समर्पण युक्त कार्य ही,
होता सफलता की गारंटी पूरी।

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30 JUN AT 12:05

हम दौड़े चले आएं,
और आप न चाहें तो दूर हो जाएं।
आपकी जरूरत पर सदा पेश हो जाएं,
और आपका मूड न हो तो अदृश्य हो जाएं।
ऐसे तो हमें आप करतब न दिखाएं,
हो सके तो ज़रा सी आत्मीयता दर्शाएं।
होता है दुख दर्द हमें भी बुरे व्यवहार से,
कृपया हमें टिश्यू पेपर न बनाएं।

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30 JUN AT 0:59

हर बात अधिक न उछालो यारो।

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23 JUN AT 20:58

निर्विघ्न करो।
रह-रहकर उठने वाली,
मन की मोजों का वहन करो।
पल पल घटते जीवन का तुम,
अपने लेखन से निर्वहन करो।
मानवता की पर कलम से तुम,
सृजन करो, निर्विघ्न करो।

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22 JUN AT 18:22

जैसे किसी नशे में खोए हैं।
ज़मीर बेचकर अपना वो,
मानवता को भी डुबोए हैं।
सब पाने की तृष्णा में,
कांटे बगिया में बोए हैं।
मर्म किसी का न पहचानें,
औरों को बस मिथ्या जानें,
लाज शर्म सब कुछ डुबोए हैं।
गहरी नींद में सोए हैं
जैसे किसी नशे में खोए हैं।

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19 JUN AT 14:42

क्षमा और याचना भी बहुत ज़रूरी है,
बस शमशीर ही उठाना सदा, मगरूरी है।
प्रेम व शान्ति से भी निकलते हैं हल बहुत,
रण तो जीवन की अंतिम मजबूरी है।
सुलझ सकती हैं गांठें जो स्नेह व संयम से,
बलपूर्वक उन्हें उलझाना दिमागी फितूरी है।
आत्मसम्मान व दंभ में अंतर है बाल भर,
ये बात समझना भी उतना ही ज़रूरी है।

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19 JUN AT 11:18

कोई भले कितनी तबाही करे।
सफलता तो अपने हाथ नहीं,
कोशिश तो पूर्ण हमारी रहे।

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15 JUN AT 20:22

सदा ईमानदार रहना।
देखना और समझना अधिक,
मगर बोलकर कम कहना।
निष्ठा और परिश्रम पर बल देना,
और थोड़े में संतुष्ट रहना।
मैंने पिता जी से सीखा,
झूठ को झूठ और सच को सच कहना।

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13 JUN AT 8:57

हर बात के लिए मत चीखो।
बिना कष्ट कुछ हासिल न होगा, तभी
जितना हो सके ख़ुद को खींचो।

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12 JUN AT 10:41

मेहनत दोस्त बनाने में लगती है बोगल,
दुश्मन तो बस सच बोलने से बन जाते हैं।

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