Swarn Deep   (स्वर्ण दीप बोगल)
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Joined 5 August 2017


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13 SEP AT 0:07

जीवन जैसे कोई सराय।
अपना अपना वक़्त बिताकर,
अगले सफ़र को बढ़ता जाए

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11 SEP AT 21:44

ठहर जाए शायद जीवन का वो पल छिन।

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8 SEP AT 8:47

तुम उन्हें और रवानी देना।
मानवता और संवेदनाओं का,
तुम उन्हें खाद और पानी देना।

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6 SEP AT 20:47

अब न हमें सुहाता है।
देख के काली बदली नभ में,
मन जैसे घबराता है।
जलमग्न बस्तियों को सोच
बारिश से अब भय आता है।

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2 SEP AT 21:06

अत्थरूं आप मुहारै बगी पे
दिलै दी बुआज बनियै,
ओठें उप्पर ते मज़बूरियें दे,
नेईं ते ताले गै बड़े हे।

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1 SEP AT 23:15

दिल की जुबान बहकर,
होठों पर मजबूरियों के,
वर्ना ताले बहुत थे।

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29 AUG AT 20:30

कभी आंधियों तूफानों में
ये सिर नहीं झुकने वाले,
किसी अड़ियल के झुकाने से
गति कभी मद्धम तो कभी तीव्र,
कदम कहीं लघु तो कहीं दीर्घ,
चलते ही रहे हम सदा,
हर स्थिति और हालातों में।

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22 AUG AT 22:28

और कभी सब लुटाकर भी जैसे सब पूरा सा लगता है।
पाने खोने से कहीं दूर है शायद ये मन का सुकून साहब,
इसे तो किसी रोते को चुप कराकर भी पूरा सा लगता है।

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15 AUG AT 21:26

असंख्य कुर्बानियों से मिली है
इसका परिहास न बनने पाए,
पूर्ण उत्तरदायित्व से इसे बचाएं।

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15 AUG AT 0:44

तिरंगा रैलियें च गला फाड़ी फाड़ियै
जेह्ड़े अज्ज भारत माता दी जय बुलााऽ रदे न
झंडा चुक्कियै पूरे आदर मानै नै,
जेह्ड़े हर कुसै दे कदम कन्नै कदम मलााऽ रदे न
एकता, भाइचारे दे बज्झदे इक इक नारें दा बी,
जेह्ड़े अज्ज हर परता दिंदे जााऽ रदे न
मेद ऐ अजादी धेयाडा निकली जाने परैंत बी
उंदा देश प्रेम इस्सै चाल्लीं बनेआ रौह्ग।
जात पात ते मजह्बी फरको फरकी शा,
उंदी सोच बाद च बिंद मुतासिर नेईं होग।

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