Swarn Deep   (स्वर्ण दीप बोगल)
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Joined 5 August 2017


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9 HOURS AGO

ये हम किस भूलभुलैया में समा गए हैं।
हमने सोचा था चिराग जलाएंगे अंधेरों में,
लगता है ख़ुद अंधेरों में उलझा गए हैं।

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28 APR AT 23:04

मगर बोलते स्वयं भी नहीं।
पाखंडियों की कोई कमी,
वैसे यहां है भी नहीं।

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28 APR AT 22:57

जब अंतर में शोर हो।
मस्तिष्क को कचोट रहा,
कोलाहल घनघोर हो।

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27 APR AT 11:50

जब तक है काया में साॅंस।
ज्यादा कुछ न कर पाओ गर,
फिर भी तुम न होना उदास।
रोज़ सीखकर बढ़ते जाना
इतना करो निरंतर प्रयास।
और संकल्पों को पूरा करने की,
दिल में जागृत सदा रहे आस।

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23 APR AT 18:24

सबको
जीवन के रंगमंच का, यही तो ताना बाना है।
अपने हिस्से का नाटक अदा करके,
किसी को पहले, तो किसी को बाद में जाना है।

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22 APR AT 19:30

में, मैं आँसू न बहाऊंगा
माना सेंटीमेंटल हूॅं, पर जान थोड़े गॅंवाऊंगा
कमी तो बहुत खलती है तेरी,
मगर एक ही जगह मैं अधिक रुक नहीं पाऊंगा।
वक्त भर देता ज़ख्म बड़े से बड़ा,
और तुमको वहम है, मैं तुम्हें भूल नहीं पाऊंगा।

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19 APR AT 22:06

कहाॅं हर दिल खूबसूरत है,
कहाॅं सब दिलों में प्यार बसता है?
लोग देते हैं धोखा यहां उसको भी,
जो दिलोजान से उनको प्यार करता है।

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18 APR AT 8:27

हमें
जानते हैं कि हम जरूरी नहीं हैं।
जिसके लिए समय निकाला जाए,
अभी हम ऐसी मजबूरी नहीं हैं।
होते हैं बस 24 घंटे ही सभी के पास,
इससे लंबे दिन की वैसे कोई थ्योरी नहीं है।
हर किसी की कद्र किया करो 'बोगल'
वक्त सदा एक सा रहे जरूरी नहीं है।

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9 APR AT 19:34

या फिर भुला दी जाएगी।
बस इतनी सी बात,
हमारा किरदार न बदल पाएगी

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2 APR AT 19:42

जीने का,
हम भी ढंग सीख रहे हैं।
जो सही लगे हमको,
अब हम वही रंग सीख रहे हैं।

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