उस परदे के जैसा है, जिसके आगे
हसीन तमाशे का पर पीछे सब वीरान है...-
जरा सी मोहब्बत से देख मुझको साकी
मैं पत्थर इस बार पिघलूंगा जरूर-
शम्मा के बिछरन से परवाने को
दिल को मनाना आ गया है,
रोते रोते हम जैसों को भी
दिल को मनाना आ गया है....-
कितने कितने रातों तक बहलाया है
भूल गए की तुम थे इतना दिल को
समझाया है-
दरवाजे के पीछे एक परछाई है जरूरी तो नहीं कि तुम हो
मैं सुन सकता हूं खंखानाहट पाजेब की ज़रूरी तो नहीं कि तुम हो
अभी जैसे कोई गुजरा सामने से मेरे जरूरी तो नहीं कि तुम हो
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इन नम आंखों से कैसे उसे जन्मदिन की बधाई दें,
बिना मर्जी के उसके ये कहके उसे रुसवाई दें,
बहोत मन करता है उनके महफ़िल में शरीक होने को
मगर जाएं तो जाएं कैसे, जब हर खामोश दर्द भी हमको सुनाई दे ...-
मुझसे जो कभी मिलना तो सफाई न देना,
हो सके तो मेरे ही ओर से गवाही दे देना,
देखना दौड़ा चला आऊंगा मिलने तुमसे
बस खामोशी से आने की दुहाई दे देना...-
न गौर करो तुम ज़माने की बातों पर
अक्सर निकल जाता है दिल को छल्ली कर कर-
खुशनसीब हूं जो बगल में हो तुम मेरे
वरना ये याद भी बहोतो को नसीब नहीं होती....-