सविता गर्ग "सावी"   (सविता गर्ग सावी)
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Poet, from chandigarg.
Joined 31 December 2017


Poet, from chandigarg.
Joined 31 December 2017

एक परिंदा प्रेम देखकर आकर बैठा पास
मानवता है अभी भी बाकी हुआ उसे आभास
आनंदविभोर हुई आत्मा पाकर ये अहसास
मन भर आया देख के उसकी आंखों में विश्वास।

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कौन जाने कौन कब तक है यहां
क्या पता कब तक चलेगा कारवां
आओ जी लें आज मिलकर जिंदगी
कल हम कहां और जाने तुम कहां।

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औरों का हद से ज्यादा सम्मान करने के चक्कर में ये भूल ही गए कि खुद का भी आत्मसम्मान है......

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ना कुछ लाये ना ले जाना कटा हुआ एक फीता है
तन पल में हो जाता मिट्टी कहती भगवद गीता है
अटल सत्य है इस सृष्टि का जग में आकर के इंसा
मृत्यु को पाने की खातिर सारा जीवन जीता है।

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क्या करोगी कविताएं लिखकर
देखना एक दिन रद्दी में चली जायेंगी
सुनेगा ही कौन तुम्हें कौन दाद देगा
तुम्हें क्या लगता है तुम्हें सुनने
लाखों की भीड़ आयेगी
तब मैंने कहा था........
कविता मेरे जीवन का आधार है
उस परमपिता का अनमोल उपहार है
आएगा एक वो दिन भी जब मैं
सारी दुनिया को कविता सुनाऊंगी
और हां इतना विश्वास है मुझे
जो आज मेरे खिलाफ खड़े हैं
कल उनके दिलों में भी जगह बनाऊंगी।

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घर तो बहुत बड़ा है लेकिन दिल सबके ही छोटे हैं
किसी ने रखा नहीं मुझे मां तू ही मुझको रख लेती।

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गिराओ लाख तुम बेशक उठाने को वो बैठा है
रुलाओ लाख तुम बेशक हंसाने को वो बैठा है
वो एक चींटी को भी भूखा कभी रहने नहीं देता
निवाला छीन लो बेशक खिलाने को वो बैठा है।

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कती मज़ा आ जावैगा फाग मनाणे मैं
कोरडे खाण एक बै आओ तो हरियाणे मैं
😁😁

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प्रतीक्षा इतनी भी न हो कि
मिलन की आस में
साँसों की डोर टूट जाये.....

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जो दिल से नेक होता है वो खुश्बू बन बिखर जाता
कपट होता है जिस दिल में वो सच्चाई से कतराता
यही मंजिल है बस इंसान के किरदार की सुन लो
वो या दिल में उतर जाता है या दिल से उतर जाता

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