जिंदगी से बड़ा अज़ाब नही किसी के पास कोई जवाब नही हमे भी ऊब है जमाने से हम भी दुनिया को आए रास नहीं अब किसी तौर भी कट जाए गिला क्या करना अब हमारी भी आंखो में कोई ख्वाब नही
इतना जी कर क्या करना है आखिर में जब यूं ही मरना है छोड़ा सबको सबकी खातिर अंधेरों से क्यों डरना है कोई मेरा साथ निभाए साथ किसी का क्यों करना सबका हिस्सा तय है जग में ज्यादा ख्वाहिश क्यों करना है कोई नही तो कैसी शियाकात अंत अकेले ही मरना है लोग कहेंगे हार गए तुम तुम्हे जीतकर क्या करना है सब कुछ तो लिखा हुआ है नए पन्नो में क्या गढ़ना है जो मेरा था जिया नही मैं जीवन को खोकर क्या डरना है थक जाओ जब जीवन रण से हथियार गिराकर सो पड़ना है इतना जी कर क्या करना है
साल हा साल की आदत है जो नही जाती उदासी उम्र भर की यार है नही जाती नही जाता मेरे अंदर से जिए जाने का डर मौत आती मगर जिंदगी नही जाती पहले लगता था ये हुनर है मेरा हंसते रहना खुद को छोड़ अब किसी बात पर नही आती
क्या बड़ा दुख है , मर जाना या अफसोस के साथ मर जाना।ये उहापोह इतना खा रहा है इतने सवाल है अंदर ।कोई उदासी नहीं कोई दुख नहीं लेकिन कोई खुशी भी नही कोई उम्मीद भी नही।मैं इतना आत्ममुग्ध इंसान हो गया कि ये सोचना ही छोड़ दिया की कमियां मुझमें है ,मैं इंसान हू और गलत हो सकता हूं।भगवान ने मुझे ताकत दी थी जिससे अगर लोग मुझे छोड़ दे तो मैं खुद को संभाल सकू मैने उसका गलत इस्तेमाल किया पत्थर बन गया और इतना पत्थर की उसके बाद उस ताकत का इस्तेमाल मैने लोगो को आजमाने और छोड़ने में किया ।मैं कोई मजबूत इंसान नही हूं और सबसे बड़ी बात मैं इंसान हू भगवान नही।ये सोचना की मैं अलग हू गलत है।जब लोगो ने मुझसे किनारा किया या मैं उनसे दुखी हुआ मैंने सोचा मैं सबसे अलग हूं मैं अकेले रहने के लिए बना हूं लेकिन सबसे अलग इंसान इंसान नही होता वो जानवर बन जाता है उसे कुछ पता नहीं होता ।अपनी बनाई काल्पनिक दुनिया में मैं राजा था खुश था हीरो था क्युकी बाहर की दुनिया में मुझे कोई सुनने वाला नहीं था या ऐसा कहा जाए कि मैं एक आम इंसान था जिसकी उम्मीद खास बनने की थी जो हो नही सका ।न मैं अपना दायरा छोड़ सका न इस सच को अपना सका कि मैं एक आम इंसान हु बस एक आम इंसान ।लेकिन अब शायद देर हो चुकी है बहुत देर ।इसलिए अब ये सवाल मन में आने लगा है कि मरना बड़ा दुख है या अफसोस के साथ मरना।जवाब और सच दोनो मैं जानता हूं
वो अब मुझसे किनारा कर चुका है मोहब्बत फिर दुबारा कर चुका है किसी को चाहना और चाहते जाना ये दस्तूर- ए - इश्क अब मर चुका है मुझे भी हादसे से सीखना था ये लड़का अब एम एससी कर चुका है