सूखी कलम   (🖋️ Ek Sukhi Kalam)
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Joined 13 May 2020


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Joined 13 May 2020

मेरे चार कदम पर मंजिल थी,
पर पा न सका मैं मंज़िल को।
नसीब में नहीं थी शायद,
वरना मंजिल अपनी थी पर...

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सिर्फ शब्द या कुछ और...

हम नहीं कहते कि तुम अपनी दिशा बदल लो।
बस इतना चाहते है कि...
एक बार हमारे कहे को शब्दों से परे समझ लो।

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30 MAY AT 2:24

बस्ता वही है,
पर मंज़िल का रास्ता नया है।
बन्दा वही है,
पर करना कुछ चाहता नया है।
नये सपने लिए,
इसी नए रास्ते पर चल पड़ा है।
बस फिक्र है कि,
पीछे छूटा... वह पुराना भी तो अपना है!

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19 APR AT 4:19

हमने कहां सोचा था...

सोचा था कामयाबी के साथ चलेंगे,
और खुद कामयाब होंगे, पर...
कामयाबी कब रास्ता बदल गई...
और हम बस भटक रहे होंगे।

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18 APR AT 21:55

इच्छा से ज़्यादा अगर...

मर्ज़ी से किए काम से ज़्यादा,
अनपेक्षित फल में खुशी मिलती है।
मेहनत करने के बाद जो अगर,
इच्छा से अधिक सफलता मिल जाए तो...
खुशी दो दूनी चौगुनी हो जाती है।

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18 APR AT 5:32

अंजान रास्तों का सफर...

यूं नही सफर अकेले नहीं कर सकता,
पर रास्ता भटक जाने से डरता हूं मैं।

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14 APR AT 2:36

कहें तो कैसे कहें...

न जाने क्या कहें,
न जाने कैसे कहें।
कहने को हिम्मत नही,
पर कहे बिना बतलाए कैसे?

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बस डरते है हम...

यूं नही की सपने हम नहीं देखते,
बहुत से सपने देख चुके है हम।
इतने सपने टूट चुके ज़िंदगी में,
सपने देखने से भी अब डरते है हम।

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बिखरे अधूरे सपनो के सहारे...

बिखरे अधूरे सपने लिए,
फिर से बुनने चल दिए।
जो खो चुके थे ज़िंदगी में,
फिर से ढूंढने चल दिए।
इच्छा तो आज भी है,
सारे सपने सच हो जाए।
पर नसीब से डर लगता है,
फिर से सपने बिखर न जाएं।

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7 APR AT 23:36

नही ही सही

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