मेरी अल्फाज
आज मुझसे रूठ गए;
दूसरों की खुशी ढूंढते ढूंढते,
मुझे मुजरिम बना गए!!!-
मेरी पहली शब्द
पहली अक्षर माँ है
उंगली पकड़े के चलाना
माँ से ही तो सीखा है।
कोमल शीतल भाव से
मन को वो चुराति है,
भूखे हुए राही की
पेट वो भरती है;
होठों में मुस्कान भरके
दिन रात काम करती है,
कभी शिकायत का मौका
किसी को वो नहीं देती है।
परछाई बनके रहती है,
मुझे सही गलत का
शिक्षा वो देती है;
काम करके मुझे
वो सीखाती है
कभी दोस्त तो कभी
मेरी बेटी बन जाती है।
ऐसी मेरी माँ है,
जो मुझ में ही रहती है
निस्वार्थ, कर्तव्यनिष्ठ
मुझे वो हर पल सीखाती है।-
तेरी बाहों की झोली में छिपा है जन्नत
तू सदा रहे पास मेरे यही है मेरी मन्नत-
यूं ना शर्माओं हमसे सनम
हम जो आपके साजन है,
जिस लड़की की हम दोस्त थे
आज उनके पति बनके पास बैठे हैं..!!
अब ना है कोई तमन्ना
ना है कोई शिकायत,
बस तुम्हारी ही करूं खयाल
यही है दिल की मन्नत..!!-
आंख है उसकी,
गहरी समुंदर;
खो जाए का कोई,
जब पड़ेगी नजर।
बातें करती है जब
वो दो नयनो पर,
चमक से उसकी
दुशमन भी मानेगी हार।
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एक जंगल में एक रानी थी
घासफूस की वो दीवानी थी।
शुभा उठकर वो स्नान करती
फल पते को साथ लाती।
एक दिन वो घूमने गई
रात हो गई पर वापस ना आई।
उसके पड़ोसी ढूंढने गए
ना पा कर लौट आए।
रास्ते में एक झील पड़ी
उसके किनारे रानी जो मिली।
टूट गई थी उसकी एक पैर
चलना पा रही होके घायल।
बोलने लगी वो उसकी कथा
आंसू बहके झील की गाथा।
प्यासी थी तो यहां पे आई
पानी पी कर सो जो गई।
मगरमच्छ कहां से आया
रानी के ऊपर हमला किया।
जान बचाकर वो जब भागी
राक्ष्यस उसकी पैर को काटी।
बच गई थी जीवन उसकी
पर खाद खादक की यही है रीति।-
ଦୂରେଇ ଯାଏ ଏ ତନୁ
ପୀଡ଼ାର ଜ୍ୱଳନ ଧାରା;
ଯେବେ ତୁମ ବଂଶୀ ଧରି
ମନ ବୃନ୍ଦାବନେ,
ମୁଁ ସାଜେ ରାଧିକା।-
ଜୀବନର ସମସ୍ତ
ଅଭିମାନ ଆଉ ଅଭିଯୋଗ
ଏ ଅନ୍ତିମ ମୁହୂର୍ତ୍ତେ
ବାଢ଼ିଦେଉଛି ତୁମ ପାଶେ;
କୋଳେଇ ନେବ
ଦୁଇ ହାତେ ତୁମର
ସୁମରି ଭଲପାଇବାର
ଯୋଛନା ମଧ୍ୟେ ।-
ଶ୍ଵେତ ବସ୍ତ୍ର ପରିଧାନ କରି
ହସ୍ତେ ପୁସ୍ତକ ବୀଣା ଧରି ;
ସ୍ଫଟିକ ଧାରିଣୀ ହଂସେ ବିରାଜିନୀ,
ସମୁଖେ ଆଜି ହୋଇଛ ପ୍ରକଟ
ମାତା ପିତା ସମ ଗୁରୁଜନ ମଣି।
ଜୟ ମା ଜୟ ଗୋ ସରସ୍ଵତୀ
ତବ ପାଦ ପଦ୍ମେ
ଢାଳୁଅଛି ପ୍ରଣତି,
ଦିଅ ମାଗୋ ବିଦ୍ୟା ଢାଳି
ଏତିକି କରୁଅଛି ତୁମକୁ ମିନତି।
ଅଜ୍ଞାନ ଟେ ମୁହିଁ କିଛି ଜାଣି ନାହିଁ
କରୁଛି କେବଳ ତୁମକୁ ପ୍ରାର୍ଥନା
ଭରିଦିଅ ମନେ ସଦବୁଦ୍ଧି ଗୁଣ
ବୁଝି ସଭିଙ୍କ ଅନ୍ତର ବେଦନା।-