Sushma RKumar   (Sushma RKumar)
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Joined 15 March 2018


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Joined 15 March 2018
14 APR 2023 AT 9:46

Let's salute his vision, spirit of sacrifice, compassion and commitment

Happy Ambedkar Jayanti

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28 JUN 2020 AT 19:47

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था'

"हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था

इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया

मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ

मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था

हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे"

~ विनोद कुमार शुक्ल


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14 APR 2020 AT 8:14

Let's salute his vision, spirit of sacrifice, compassion and commitment.

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15 JAN 2022 AT 19:01


हवाओं के पंखों पर होकर सवार
चल चले..पर्वत के उस पार..
अनजानी सी डगर हो
न मंजिल की फिकर हो..
आसमान के बाहों में
बादलों का एक घर हो..
मोहब्बतें ही मोहब्बतें हो
जहां तक जाती ये नज़र हो..
झरोखे से झांकती जुगनूओं की टोली
और सितारो से सजा वो शहर हो..
मैं हूं..तुम हो..तो ये कायनात भी हो साथ
फिर कितना हंसी  ये सफर हो...
जी ले..हर लम्हा जी भर भर के हम
जब साथ तुझ-सा हमसफ़र हो...

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12 JAN 2022 AT 21:31

जब शब्दों की जगह मौन बोले 
आवाज की जगह चुप्पी मुखर हो उठे
भीतर का अव्यक्त कुछ बिना कहे
कथन के रूप में मुकम्मल घोषणा कर दे
तब भी  संवाद होता है
और बहुत प्रभावी संवाद होता है...

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28 NOV 2021 AT 8:12

कोई भी विचार गलती की संभावना से परे या अंतिम सत्य नहीं हो सकता...यथासंभव,यथासमय,यथावश्यक हर विचार पर पुनर्विचार होना चाहिए।

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26 NOV 2021 AT 10:02

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है,
माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है।

वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तगू,
मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है।

सामान कुछ नहीं है फटेहाल है मगर,
झोले में उसके पास कोई संविधान है।

उस सिरफिरे को यों नहीं बहला सकेंगे आप,
वो आदमी नया है मगर सावधान है।

फिसले जो इस जगह तो लुढ़कते चले गए,
हमको पता नहीं था कि इतनी ढलान है।

देखे हैं हमने दौर कई अब ख़बर नहीं,
पाँवों तले ज़मीन है या आसमान है।

वो आदमी मिला था मुझे उसकी बात से
ऐसा लगा कि वो भी बहुत बेज़ुबान है।

दुष्यंत कुमार

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21 NOV 2021 AT 14:01

नया दरवाजा खुल रहा है
अंतर्मन में
और मैं
अभिभूत हुई
बस अनुभव करे जा रही हूँ...

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16 NOV 2021 AT 14:49

हर सांस शिकायत करती है..
तू जी ले ना जी भर -भर के
कच्चे धागे की ये डोरी
आखिर ...
कब तक साथ निभाएगी
एक दिन तो टूट ही जाएगी
जब सब कुछ छूट ही जाना है
हर नाता टूट ही जाना है
फिर मरने से पहले
भला क्यूं मरना
हैं सांसे जब तक
मुस्कुराहते हुए
जीवन जीते जाना है...

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16 NOV 2021 AT 8:27

खुद को जानने की प्रक्रिया
धीमी परंतु अत्यंत रोचक है
जितना शीघ्र शुरुआत करेंगे,
उतना ही शीघ्र शांति की ओर बढ़ेंगे...

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