Sushil Swami   (सुशील स्वामी 'समन्दर')
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Insta thesushilswami
Joined 6 March 2018


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Joined 6 March 2018
4 SEP 2021 AT 16:20

बह जाते है आँसुओं के साथ,
उदास आँखों में सपने नहीं ठहरते।

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22 JUN 2021 AT 6:37

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18 JUN 2021 AT 10:20

ढल जाती है हर रोज ये रात,
बनकर एक उजला प्रभात।
स्याह निशा से बन उजला सवेरा,
लाल-केसरिया-भगवा रंग सुनहरा।
इसलिए मन कहता मत मान हार,
दूर होगा ही उजाले से अंधकार।।

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29 APR 2021 AT 6:07

हर सड़क! हर मोड़ पर इश्तिहार है,
मेरे सरकार को दिखावे की दरकार है।
इन्हीं इश्तिहारों तले कुचली जाती है हक़ीक़त,
इन्हीं इश्तिहारों पर बदलती रहती सरकार है।
हो हर तरफ हसीन इश्तिहार लेकिन,
अवाम को रोज़ी-रोटी की दरकार है।
जरूरत, जुर्रत ना बन जाएँ कहीँ,
मिरे सरकार को जागने की दरकार है।
ख्वाब दीवारों पे नहीं, हक़ीक़त में हो,
यही हो इश्तिहार! ऐसी ही दरकार है।
सृजनकर्ता! विनाशक! संहारक,
सबसे ऊपर, इक ही सरकार है।
ये दुनिया इश्तिहार है उस खुदा का,
हरेक दिन उसकी नेमत का उपहार है।

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26 APR 2021 AT 11:20

परेशाँ इस ओर, परेशाँ उस ओर भी,
वो खुदा इस ओर भी, उस  ओर भी।

हरेक  शक्स  रखता है हुनर ए  ज़ंग,
तुम जीतना इस ओर भी,उस ओर भी।

फ़कत  इतना अता करना मेरे मौला,
हंसतें रहें इस ओर भी, उस ओर भी।

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23 MAR 2021 AT 11:31

इक दूर जंगल में बहता दरिया तू कोई,
रेगिस्ताँ में भटकता मुसाफिर मैं कोई।
 
जैसे मिलता है दरिया से दरिया कोई,
मिलें हम - तुम, ना पहचाने कोई।

आ चलें साथ-साथ 'समन्दर' की ओर,
डूब जाएँ! बन जाएँ 'समन्दर' कोई।

इक दूजे को देखते - देखते खो जाएँ,
बह जाएं! टकरा जाएँ साहिल से कोई।

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23 MAR 2021 AT 7:20

इंकलाबी अल्फ़ाज! इंक़लाबी जुनूँ!
मुल्क की जरूरत है, इंक़लाबी लहू।

अब उठे  हर  तरफ  बुलंद आवाज़,
अब खौले हर रगों में इंक़लाबी लहू।

तुम्हीं     जागो!    तुम्हीं   सोए   हो!
तुम्हीं  घोलों रगों में, इंक़लाबी  लहू।

कोशिशें करेंगे क्रान्ति कुचलने की,
तुम रखना उबालें, इंक़लाबी लहू।

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19 MAR 2021 AT 14:19

कभी इश्क़ ना किया उसने,
आँसुओं को ना पिया उसने।
तव्व्ज़ो दी बहारों को उसने,
कभी पतझड़ ना जिया उसने।
मुझसे बिछड़ने के बाद,
कभी याद ना किया उसने।
हरेक रूमानी रंग के इतर;
दिलों की जंग के भीतर,
खंजर ना उठाया उसने,
कत्ल निगाहों से किया उसने।

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11 MAR 2021 AT 8:12

इक पल के दीदार को तरसे है नैन।
इक पल के दीदार में बरसे हैं नैन।।
अल्फाज़ में ना हो सके बयां,
तड़पता दिल औ' बरसते नैन।।
इश्क़ करते हैं, बहुत करते है।
क्या बयाँ नहीं करते मेरे नैन?
श्वेत-स्याही रंगों से बने लेकिन,
खुबसूरत ख्वाब दिखाते है नैन।

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27 FEB 2021 AT 17:18

आंकड़ों का  तिलिस्म नहीं! हक़ीक़त  देखी है?
मिरे मुल्क में चुनावी वायदों की रौनक़ देखी है?
रोटी  को तरसती निगाहों  का दर्द देखा है?
बहुत बड़ा है मेरा हिंदुस्तान! क्या  देखा है?
सरकारें बदलती रहती है, मुद्दे है वही,
गरीबी, बेरोजगारी का इलाज़ है कहीं?
जुरर्त करो! जरूरत है,जमाने की,
मेरे सरकार को नींद से उठाने की।
अवाम कैसे देखें  कोई ख्वाब,
आंखों में है उनके सिर्फ आब।
साल-दर - साल बीत गया,
उम्मीद-ए-दरिया रित गया।
अब तो जागों मेरे देश,
इंक़लाब अंतिम संदेश।

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